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पिता के पत्र पुत्री के नाम (खेती से पैदा हुई तब्दीलियाँ)

pita ke patr putri ke naam (kheti se paida hui tabdiliyan)

जवाहरलाल नेहरू

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जवाहरलाल नेहरू

पिता के पत्र पुत्री के नाम (खेती से पैदा हुई तब्दीलियाँ)

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    अपने पिछले ख़त में मैंने कामों के अलग-अलग किए जाने का कुछ हाल बतलाया था। बिल्कुल शुरू में जब आदमी सिर्फ़ शिकार पर बसर करता था, काम बँटे हुए थे। हर-एक आदमी शिकार करता था और मुश्किल से खाने भर को पाता था। पहले मर्दों और औरतों के बीच में काम बँटना शुरू हुआ होगा, मर्द शिकार करता होगा और औरत घर में रहकर बच्चों और पालतू जानवरों की निगरानी करती होगी।

    जब आदमियों ने खेती करना सीखा तो बहुत सी नई-नई बातें निकलीं। पहली बात यह हुई कि काम कई हिस्सों में बँट गया। कुछ लोग शिकार खेलते और कुछ खेती करते और हल चलाते। ज्यों-ज्यों दिन गुज़रते गए आदमी ने नए-नए पेशे सीखे और उनमें पक्के हो गए।

    खेती करने का दूसरा अच्छा नतीजा यह हुआ कि लोग गाँव और क़स्बों में आबाद होने लगे। खेती के पहले लोग इधर-उधर घूमते फिरते थे और शिकार करते थे। उनके लिए एक जगह रहना ज़रूरी नहीं था। शिकार हर-एक जगह मिल जाता था। इसके सिवा उन्हें गायों, बकरियों और अपने दूसरे जानवरों की वजह से इधर-उधर घूमना पड़ता था। इन जानवरों को चरने के लिए चरागाह की ज़रूरत थी। एक जगह कुछ दिनों तक चरने के बाद ज़मीन में जानवरों के लिए काफ़ी घास पैदा होती थी और सारी जाति को दूसरी जगह जाना पड़ता था।

    जब लोगों को खेती करना गया तो उनका ज़मीन के पास रहना ज़रूरी हो गया। ज़मीन को जोत-वोकर वे छोड़ सकते थे। उन्हें साल भर तक लगातार खेती का काम लगा ही रहता था और इस तरह गाँव और शहर बन गए।

    दूसरी बड़ी बात जो खेती से पैदा हुई वह यह थी कि आदमी की ज़िंदगी ज़्यादा आराम से कटने लगी। खेती से ज़मीन में खाना पैदा करना सारे दिन शिकार खेलने से कहीं ज़्यादा आसान था। इसके सिवा ज़मीन में खाना भी इतना पैदा होता था जितना वह एक दम खा नहीं सकते थे। इससे वह हिफ़ाज़त से रखते थे। एक और मज़े की बात सुनो। जब आदमी निपट शिकारी था तो वह कुछ जमा कर सकता था या कर भी सकता था तो बहुत कम, किसी तरह पेट भर लेता था। उसके पास बैंक थे जहाँ वह अपने रुपए या दूसरी चीज़ें रख सकता। उसे तो अपना पेट भरने के लिए रोज़ शिकार खेलना पड़ता था, खेती से उसे एक फ़सल में ज़रूरत से ज़्यादा मिल जाता था। इस फ़ालतू खाने को यह जमा कर देता था। इस तरह लोगों ने फ़ालतू अनाज जमा करना शुरू किया। लोगों के पास फ़ालतू खाना इसलिए हो जाता था कि वह उससे कुछ ज़्यादा मेहनत करते थे जितना सिर्फ़ पेट भरने के लिए ज़रूरी था। तुम्हें मालूम है कि आजकल बैंक खुले हुए हैं जहाँ लोग रुपए जमा करते हैं और चेक लिखकर निकाल सकते हैं। यह रुपया कहाँ से आता है? अगर तुम ग़ौर करो तो तुम्हें मालूम होगा कि यह फ़ालतू रुपया है यानी ऐसा रुपया जिसे लोगों को एकबारगी ख़र्च करने की ज़रूरत नहीं है इसलिए इसे वे बैंक में रखते हैं। वही लोग मालदार हैं जिनके पास बहुत सा फ़ालतू रुपया है, और जिनके पास कुछ नहीं वे ग़रीब हैं। आगे तुम्हें मालूम होगा कि यह फ़ालतू रुपया आता कहाँ से है। इसका सबब यह नहीं है कि आदमी दूसरे से ज़्यादा काम करता है और ज़्यादा कमाता है बल्कि आजकल जो आदमी बिलकुल काम नहीं करता उसके पास तो बचत होती है और जो पसीना बहाता है उसे ख़ाली हाथ रहना पड़ता है। कितना बुरा इंतज़ाम है! बहुत से लोग समझते हैं कि इसी बुरे इंतज़ाम के सबब से दुनिया में आजकल इतने ग़रीब आदमी हैं। अभी शायद तुम यह बात समझ सको इसलिए इसमें सिर खपाओ। थोड़े दिनों में तुम इसे समझने लगोगी।

    इस वक़्त तो तुम्हें इतना ही जानना काफ़ी है कि खेती से आदमी को उससे ज़्यादा खाना मिलने लगा जितना वह एकदम खा सकता था। यह जमा कर लिया जाता था। उस ज़माने में रुपए थे बैंक। जिनके पास बहुत सी गायें, भेड़ें, ऊँट या अनाज होता था वही अमीर कहलाते थे।

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