हाथी घोड़ा ख़ाक है

hathi ghoDa khak hai

पलटू

पलटू

हाथी घोड़ा ख़ाक है

पलटू

हाथी घोड़ा ख़ाक है कहै सुनै सो ख़ाक॥

कहै सुनै सो ख़ाक ख़ाक है मुलुक ख़ज़ाना।

जोरू बेटा ख़ाक ख़ाक जो साचै माना॥

महल अटारी ख़ाक ख़ाक है बाग बगैचा।

सेत सपेदी ख़ाक ख़ाक है हुक्का नैचा॥

साल दुसाला ख़ाक ख़ाक मोतिन कै माला।

नौबतख़ाना ख़ाक ख़ाक है ससुरा साला॥

पलटू नाम ख़ुदाय का यही सदा है पाक।

हाथी घोड़ा ख़ाक है कहै सुनै सो ख़ाक॥

अंततः हाथी-घोड़े मिट्टी हैं। इनकी बड़ाई करने-सुनने वाले मिट्टी हो जाते हैं। देश और ख़ज़ाना मिट्टी हैं। पत्नी-पुत्र जो सच माने जाते हैं, अंततः ख़ाक हो जाते हैं। महल-अटारी, बाग-बग़ीचे, सारी चमक-दमक, हुक्के तथा हुक्के की नलियाँ, शाल-दुशाले, मोतियों की मालाएं, नौबतख़ाने और श्वसुर-साले मिट्टी हैं। पलटू साहेब कहते हैं कि एक ख़ुदा का नाम ही सदैव पवित्र है। जड़ दृश्य तो सब ख़ाक हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 20)
  • संपादक : अभिलाषा दास
  • रचनाकार : पलटू
  • प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
  • संस्करण : 2012

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