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यात्रा

yatra

नंद चतुर्वेदी

अन्य

अन्य

और अधिकनंद चतुर्वेदी

    यात्रा के प्रसंगों में

    वे सब बताते रहे

    भोगी हुई जिजीविषा

    और उसका अंत

    सूर्योदय और एक नियतिहीन

    काल-विक्षुब्ध साँझ

    नीले तरंगमय जल पर

    एक कमल तैरता रहा

    किंतु वे ढोते रहे

    वह जो उन जहाज़ों पर लदा था

    भाग्य-लक्ष्मी—तुम कहाँ हो?

    तुम कहाँ हो?

    उन सबके जाल व्यर्थ गए

    बार-बार उन्हें मूर्च्छित मछलियाँ

    रंध्रहीन शंख और मणियों की तरह

    पारदर्शी पाषाण मिलते गए

    आख़िर हुआ क्या

    उन संदर्भातीत यात्राओं का

    क्या हुआ?

    कुछ नहीं

    वे ढेर-सी रेत इकट्ठी करते रहे

    जिसे उन्होंने बार-बार प्रणाम किया

    लिखा प्रेम और प्रेम और प्रेम

    वे सब फिर ठंडे हो गए

    ढूँढ़ने लगे अग्नि कहाँ है?

    अंत में वे सब ज्ञानियों की तरह

    शब्द निकालने लगे

    फिर शब्दों के निगूढ़ अर्थ

    लेकिन आख़िर हुआ क्या

    उस प्रेम और अग्नि और शब्दों की यात्रा का?

    कुछ नहीं

    वे सब कमल-पत्र पर पड़ी

    बूँद की तरह थरथराते रहे

    पुलों के आर-पार

    भीड़ और समय

    औरतें और बालक

    जन्म और अजन्म

    गुज़रते गए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नंद चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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