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याँ

yan

मृत्युंजय

अन्य

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और अधिकमृत्युंजय

    अधटूटे आईने की किरचें बिखरी हैं

    सहमी-सहमी पृथ्वी डर से काँप रही है

    भाप उठ रही है अंतर के अतल कुंड से

    हँसते हैं डर, हर टुकड़े में अलग-अलग हो

    पिंडलियों में दफ़्न दर्द बढ़ता जाता है

    उबल रही है त्वचा भाप से उघड़ रही है

    और हवाओं में चिथड़े हैं हर शोख़ी के

    साँस-साँस भीतर जाती है दुनिया थोड़ी

    काट-काट लाती है बाक़ी ख़ालिस जीवन

    और ख़ुदकुशी के रस्ते पर सधे क़दम से

    जाता जाता जाता जाता है पागलपन

    मेरे मुतरिब छू ले मुझको नज़रों भर कर

    इस मुरदों के टीले में ही घर है मेरा

    ख़ाक जबीं पर निशानात होंगे लहरों के

    सूना सुर्ख़ रास्ता ऐसे खो जाएगा

    ठिठुर कर काँपती है रात

    बबूल-फूलों पर नींद से उलझते हैं जुगुनू

    कटे नाख़ून-सा कोरदार है द्वितीया का चाँद

    फ़न काढ़े चौकन्ना-सा सन्नाटा है

    हवाओं के घोड़े पिछले पैरों पर स्तब्ध खड़े हैं

    टूटी धुरी वाला समय का रथ रुक गया है

    कलाई के इंतज़ार में ठहरा हुआ है पल

    संभावना के प्रेत उलटे पैर स्थिर हैं

    रोशन अँधेरों में गूँजी चीख़ भरी चुप लाओ

    आओ दिल में ख़ंजर मारो जल्दी क़दम बढ़ाओ

    स्याह सुबह की थकी हवा में दर्द पिरोओ जाओ

    स्वादहीन जीभों की ख़ातिर थोड़ा नमक मँगाओ

    रंग गंध सब ग़ायब सूनापन लहराया

    फिर से वही लबादा मैंने खोया पाया

    जिसके भीतर हवा बंद है दिल ज़ख़्मी है

    देखो मेरा क़ातिल मुझको याँ ले आया

    स्रोत :
    • रचनाकार : मृत्युंजय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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