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प्रहरान्त के आलोक से रंजित

prahrant ke aalok se ranjit

रवींद्रनाथ टैगोर

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रवींद्रनाथ टैगोर

प्रहरान्त के आलोक से रंजित

रवींद्रनाथ टैगोर

और अधिकरवींद्रनाथ टैगोर

    प्रहरान्त के आलोक से रंजित

    उस दिन चैत का महीना था,

    जब तुम्हारी आँखों में

    मैंने अपना सर्वनाश देखा था।

    इस संसार में नित्य क्रीड़ाएँ चलती हैं,

    प्रतिदिन नाना प्राणियों का समागम होता है।

    घाट-बाट में हज़ारों लोगों का

    हास-परिहास चलता है।

    उन सबके बीच तुम्हारी आँखों में

    मेरा सर्वनाश चमकता है।

    आम के वन में वायु का झोंका आता है,

    मंजरियाँ झर पड़ती हैं।

    जिसे बहुत दिनों से जानता हूँ,

    वही गंध हवा में भर उठती है।

    मंजरित डाल में,

    मधु-मक्खियों के पंख-पंख पर

    मधु ऋतु का दिवस

    क्षण-क्षण निश्वास फेंकता है,

    उन सबके बीच तुम्हारी आँखों में

    मेरा सर्वनाश चमकता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रवींद्रनाथ की कविताएँ (पृष्ठ 298)
    • रचनाकार : रवींद्रनाथ टैगोर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1967

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