वह किसकी मौत मरा

wo kiski maut mara

उज्ज्वल शुक्ल

उज्ज्वल शुक्ल

वह किसकी मौत मरा

उज्ज्वल शुक्ल

कुचले जामुनों से

जामुनी हुई फ़ुटपाथ पर

कविता ढूँढ़ता मैं

अक्सर ढूँढ़ लेता हूँ

एक कुचला हुआ मनुष्य

जो अभी वहाँ फिसलने के बाद

लोगों से नज़रें चुराता उठा होगा

वह जो अभी इस मंदिर के सामने

सिर झुकाकर जा रहा है

वह अगले पाँच किलोमीटर में

बीस बार सिर झुकाएगा

और चालीस बार दुःख उसे पटकेंगे

हर बार बेर की झाड़ियाँ

उसके शरीर से निकलेंगी

आत्मा को चीरते हुए

हर बार एक आस्था उसमें उड़ेल देगी

एनेस्थीसिया की डोज़

धूप ऐसे मनुष्य के सिर तक ही नहीं रुकती

वह एक चमचमाती कटार की तरह

उसमें घुस जाती है

और देखो कोट-टाई में वह

सड़क के किनारे नीम तले बैठा

कैसा साधु लग रहा है

ठीक वहीं परसों तक

एक भिखारी बैठता था

जो पागल था

हालाँकि यह व्यक्ति भिखारी है

ही पागल

इन्हीं दोनों व्यक्तियों के बीच

पागलपन लटकता रहता है

इन्हीं दो स्थितियों के बीच

जीवन चरमराते प्लाईवुड-सा उखड़ता है

जिसकी फाँस दोनों व्यक्तियों में गड़ती है

ट्रेन से कटते मनुष्य के

अवसाद-सा मैं

सामने वाली दीवार पर

सूखे लहू की छाप था

जिस पर एक पखवाड़े बाद

एक व्यक्ति पान थूककर जा रहा है

ठीक अभी इतिहासकारों को बैठक करनी चाहिए

और साहित्यकारों को चौपाल लगानी चाहिए

कि वह आदमी जो मार्क्स, गांधी, अंबेडकर

और सावरकर के बीच आदमी था

वह किसकी मौत मरा

यह कहकर पल्ला झाड़ना कि

वह बुद्धिजीवी की मौत मरा

इतिहास में सबसे बड़ा बहाना

क़रार दिया जाएगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : ,
  • रचनाकार : उज्ज्वल शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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