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वो आदमी जो हम बना रहें हैं

wo adami jo hum bana rahen hain

नवल बिश्नोई

अन्य

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नवल बिश्नोई

वो आदमी जो हम बना रहें हैं

नवल बिश्नोई

और अधिकनवल बिश्नोई

    ना कोई बची हैं उम्मीद उसमें अब कोई काँश रहा है

    ना कोई पराया सगा है उसका कोई अपना ख़ास रहा है

    ज़माने के बाज़ार में वो बस अब रूहानियत तलाश रहा है

    अंदर से हैं घुटा हुआ ले मजबूरी की साँस रहा है

    हम उसे कामयाब ज़्यादा और इंसान थोड़ा कम बना रहे हैं

    कैसा हैं वो आदमी जो हम बना रहे हैं?

    हर शख़्स में हैं हैवान, कहाँ अब ख़ुदा के बंदें रह गए

    सफ़ेद है लिबास बाकी दो नंबर के धंधे रह गए

    कहाँ हैं हलीमी हर तरफ़ नफ़रतों के फंदे रह गए

    बंदूक़ उसकी अपनी हैं लोंगों के कंधे रह गए

    हम ख़ुशी की सूरत में ग़म बना रहे हैं

    कैसा है वो आदमी जो हम बना रहे हैं?

    जो चल रहा है उसके जाएँ खिलाफ़ इतनी अब हिमाक़त कहाँ हैं

    सवाल पूछने की हमें आदत कहाँ हैं?

    ख़ैर पूछे भी तो भला अब इजाज़त कहाँ हैं

    हैं ग़म की निजात का 'जरिया सच्ची अब इबादत कहाँ हैं’

    दरसल हम ऊर्जा की एवज में बम बना रहे हैं

    कैसा हैं वो आदमी जो हम बना रहे हैं?

    स्रोत :
    • रचनाकार : नवल बिश्नोई
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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