Font by Mehr Nastaliq Web

एक कवि का बयान अशीर्षक

ek kavi ka byaan ashirshak

आमिर हमज़ा

अन्य

अन्य

आमिर हमज़ा

एक कवि का बयान अशीर्षक

आमिर हमज़ा

और अधिकआमिर हमज़ा

     

    बीते साल इस्राइली हमले में मारे गए फ़लस्तीनी कवि रेफ़ात अल-अरीर के नाम

    वह कविताएँ लिखता था।
    वह और और कविताएँ लिखना चाहता था। 
    लेकिन एकाएक उसने एक रोज़ कविताएँ लिखना छोड़ दिया। या कि कविता ने उसे छोड़ दिया।
    यह ठीक-ठीक न वह जानता था और न कविता जानती थी।

    मनुष्यों के इतर अब उसे चाह थी एक पेड़ एक घर की सोहबत की
    वह पेड़ से टूटता आता पत्ता देखता तो उसे अपने भीतर कविता टूटती दिखलाई पड़ती। 
    उसे उसकी आँखों के सामने लाल छींटे दिखलाई पड़ते लहू के।
    वह गिलहरियों को…
    चिड़ियों को…
    दीवार पर चलती जाती क़तारबद्ध चीटियों को देखता और मन ही मन कविता कहने लगता।
    और वह फिर अपने भीतर के मन में लाश की आँख से झाँकता और कविता का क़त्ल कर देता।

    वह चार्ली चैपलिन की मानिंद जिसे वह अपना महबूब नज़र वाला कहा करता डर्बी हैट और बड़े-बड़े जूतों को पहन दुनिया का चक्कर लगाने का तसव्वुर किया करता।
    दरअस्ल वह हर संभव कविता से भागना चाहता था। कहाँ वह नहीं जानता था।
    वह अब दर्द में था। वह अब कविता में नहीं था।
    अब दर्द उसमें था। अब कविता उसमें नहीं थी।

    और यों नवंबर के मातम में चेहरे पर ख़ून के छींटे लिए
    जब आसमान से बम-ओ-बारूद की शक्ल में
    बच्चों के सिर पर मुसलसल बरस रही थी मौत
    अपनी आँखों को बंद कर पढ़ते हुए—
    ‘इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैही राजिऊन’
    उसने कविता से अपने संबंध-विच्छेद की औपचारिक घोषणा की।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आमिर हमज़ा
    • प्रकाशन : समालोचन

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए