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उड़ान और उधार चेहरा

uDan aur udhaar chehra

अनुवाद : खड़कराज गिरी

वीरभद्र कार्कीढोली

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वीरभद्र कार्कीढोली

उड़ान और उधार चेहरा

वीरभद्र कार्कीढोली

और अधिकवीरभद्र कार्कीढोली

    उड़ रहे हो, देख रहा हूँ, तुम्हारा उड़ना

    यह कैसी उड़ान है—हठात् की, आश्चर्य की

    वस्तुतः तुम्हें उड़ते-उड़ते

    देखना चाहता हूँ

    ऊपर और ऊपर, पर

    ऊपर से बहुत ऊपर नहीं!

    आसमान पर पहुँच रहे हो उड़कर

    अनभिज्ञ थे आसमान से तुम भी

    अनुमान कर सका

    त्रास है मुझमें

    कि इस वक्त तुम्हें क्यों

    सूक्ष्म से अतिसूक्ष्म देख रहा हूँ!

    वह आसमान ही वैसा है

    यथार्थ और सम्पन्न ही,

    कह नहीं सकता

    यह कैसा भय उभरता है

    पंख की तरह मेरे भीतर

    कि तुम्हें पंख देकर क्यों उड़ा ले गया!

    किसने दी हिम्मत उड़ने की!!

    उड़ान की भी रफ्तार होती है

    होती है उड़ान की भी सरहद

    तुम उड़कर आसमान को पार कर

    जाने पर भी

    ख़ुशी नहीं है मुझे

    संत्रास तो इस बात का है

    कि यहाँ से उड़ा ले जाने वाले

    उड़ने वाले

    आसमान पर पहुँचने पर उन्हें

    बाज और चील की तरह देखता हूँ

    और उन बाजों और चीलों के पंख

    आसमान में आसमान के जब्त करने पर।

    सच, वह ऐसी हालत में गिरा है

    जहाँ वह

    अपना चेहरा जब्त कर

    खड़े होने की स्थिति में'

    क्षत-विक्षत चेहरों की दुकान पर

    उधार चेहरा खरीद रहा है

    खरीद रहा है!

    यूँ तो तुम्हारी उड़ान से

    संतुष्ट नहीं हूँ मैं

    उड़ने से पहले तुम्हारी आतुरता देखकर

    पूछना ही भूल गया हूँ—

    ऐसी उड़ान के लिए पंख

    किसने दिये तुम्हें?

    क्यों दिये?

    पंख देकर फिर तुम्हें ही क्यों

    उड़ा ले गया?

    उड़ते वक्त चुपचाप उड़ने का साहस

    तुम्हें किसने दिया? किसने दिया?

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस शहर में तुम्हें याद कर (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : वीरभद्र कार्कीढोली
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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