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तुम्हारी ईश्वरीय दुनिया में

tumhari ishwariy duniya mein

अनुवाद : खड़कराज गिरी

वीरभद्र कार्कीढोली

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वीरभद्र कार्कीढोली

तुम्हारी ईश्वरीय दुनिया में

वीरभद्र कार्कीढोली

और अधिकवीरभद्र कार्कीढोली

    जानती हो तुम

    तुम पर कितना आसक्त हूँ मैं?

    समझ सकती हो तुम

    तुम पर कितनी श्रद्धा है मेरी?

    पर क्षम्य नहीं तुम्हारी तस्वीर

    दीवारों पर टँगने की औपचारिकता निभाना

    तुम तो जानती ही हो

    मेरे दिल में एक ही तस्वीर है तुम्हारी।

    मुझसे नहीं हो पाता

    आज भी नहीं

    घंटों बैठकर तुम्हारी आराधना करना

    आराधना के नाम पर सिर्फ़ ढोंग करना

    तुम तो यह भी जानती हो—

    मेरे भीतर मौनता की एक मूर्ति है

    जो समर्पित है सिर्फ मुझे।

    हाँ, मैं कभी किसी मन्दिर में नहीं गया

    कारण, मैं जानता था

    तुम कभी मंदिर में नहीं मिलोगी

    पर, यह नहीं समझ पाया हूँ आज

    उफ्! कैसा हुक्म हुआ

    कि निराधार गिरफ्तार कर

    लाया गया है मुझे

    तुम्हारी ईश्वरीय अदालत में।

    वस्तुतः तुम यहाँ तक जानती हो मुझे

    कि आज भी सत्य के नाम पर

    ढेर बयान दे रही हो तुम।

    मेरे निर्दोषपन को छिपाकर

    दोष ही उकेर रही हो आज तुम।

    मेरी कोमलता और स्वाभिमान को कुचलकर

    कारावास की सजा सुना रही हो तुम।

    मेरी वीरता और मानवता को

    हर सुबह कोड़ा मारकर

    मुझसे क्या उगलवाना चाहती हो तुम?

    मुझसे और क्या-क्या जानना चाहती हो तुम??

    —‘किस अपराध की सजा है!’

    यही समझ नहीं पा रहा हूँ मैं

    तुम घोंपो अपने विषाक्त भालों से

    बंदी हूँ अंततः

    तुम्हारे ही कारागार में

    पर तुम्हारे चरणों पर झुक नहीं सकता मैं।

    हर तरह की सजा दी है तूने,

    जीवन को पहुँचा चुके थे

    मृत्यु के दरवाजे तक!

    हो सकता है उसी वक्त

    जब मैं घबराया हुआ था

    मेरे हृदय में तुम्हारे लिए जो भावनाएँ थीं—

    —प्रेम, श्रद्धा, समर्पण और आराधना की।

    तुम्हीं ने तो गँवाया

    मेरी आख़िरी ख़्वाहिश

    स्वीकारो इसे

    द्वार खोल दो—कारागार के

    मुझे तुम्हारे कारागार से निकलने दो

    मुझे इन हालात से निपटने दो

    मुझे तुम्हारे कारावास से परे

    जो जीवन है

    नितांत नवीन जीवन

    वहीं से गुज़रने दो :

    कि मैं तुम्हारे ईश्वरीय दुनिया में

    पुन: एक युग ईश्वरीय होकर जी सकूँ!

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस शहर में तुम्हें याद कर (पृष्ठ 38)
    • रचनाकार : वीरभद्र कार्कीढोली
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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