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तुम आओगे वापस

tum aoge vapas

कलानाथ मिश्र

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कलानाथ मिश्र

तुम आओगे वापस

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और अधिककलानाथ मिश्र

    मैं रहूँगी तब?

    जब तुम आओगे वापस

    शायद नहीं,

    मेरे चारों ओर संसार 

    अब दिखता है उदास

    मेरे पास अब उतनी ताक़त नहीं 

    कि उस मोड़ पर फिर जाऊँ

    जहाँ तुमसे मिली थी पिछली बार

    मेरे कमज़ोर घुटने काँपते हैं।

    मैं देखती हूँ 

    बाहरी संसार की ओर

    अपने अँधेरे कमरे की खिड़की से

    प्रकाश मेरी थकी आँखों को 

    और दुखाता है

    मैं लेती हूँ आसरा फिर अँधेरे का!

    मैं अब और इंतज़ार 

    नहीं कर सकती

    मैं दिन गिनती हूँ

    दिन हो गए हैं 

    लंबे और उबाऊ मेरे लिए

    रातें हैं आशंकाओं से भरी

    मैं इंतज़ार करती हूँ घबराई हुई

    क्या मैं देखूँगी अगला दिन

    नहीं यह सब मैं अब 

    और नहीं सह सकती

    मैं मुश्किल से साँस ले पाती हूँ 

    मैं खिड़की की सलाखें पकड़ती हूँ 

    और अपने दोनों हाथों से 

    देखने को आख़िरी बार 

    सड़क का वह मोड़

    जहाँ से तुम धीरे-धीरे 

    मेरी नज़रों से ओझल हुए थे।

    अँधेरा मुझे घेर लेता है

    मेरे होंठ काँपते हैं 

    कहने को आख़िरी प्रार्थना

    कहने को विदा तुम्हें

    माँगने को माफ़ी 

    कि नहीं रह पाऊँगी 

    तब

    जब तुम आओगे!

    लेकिन मैं जीवित रहूँगी

    तुम्हारे लिए 

    तुम देखोगे मुझे 

    चमकते सितारों में

    खिलते फूलों में

    सुनना तुम मुझे 

    सरिता की कलकल में 

    पंछियों के कलरव में

    हरी घास में 

    पाओगे तुम मेरा स्पर्श

    बसंत की ठंडी हवा में 

    महसूसना मुझे बार-बार

    मैं उनमें जीवित रहूँगी!

    सब जगह मेरी मौजूदगी

    तुम्हें याद दिलाएगी 

    अपने युवा दिनों की 

    तुम्हारे वादे 

    मेरा लम्बा इंतज़ार

    और ज़िंदगी की 

    कड़वी सच्चाईंयों के सामने

    मेरा हार जाना।

    मेरी इच्छाओं का मर जाना

    हाँ, मेरी इच्छाएँ 

    मर जाएँगी मेरे ही साथ

    पर तुम्हारे लिए 

    मेरा प्यार हमेशा रहेगा

    शायद इस आशा में कि 

    फिर होंगे हम साथ

    मैं नहीं होऊँगी जब

    तुम वापस आओगे!

    स्रोत :
    • रचनाकार : कलानाथ मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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