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जब मैं ज़िंदगी से बाहर था

jab main zindagi se bahar tha

ऋतु कुमार ऋतु

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ऋतु कुमार ऋतु

जब मैं ज़िंदगी से बाहर था

ऋतु कुमार ऋतु

और अधिकऋतु कुमार ऋतु

    जब मैं ज़िंदगी से बाहर था

    अनजान था ज़िंदगी की ज़रूरतों और उनके ख़तरों से

    और आज जब हूँ ज़िंदगी के भीतर

    देखता हूँ अतीत को

    और सोचता हूँ भविष्य के बारे में।

    मुझे अचरज होता है

    उन बादलों पर

    जो गुज़रते हैं आकाश से

    और दिन ढल जाने पर

    रात के हमले के बावजूद आँसू बहाए बग़ैर

    गुज़र जाते हैं बे-ख़ौफ़ होकर।

    ज़िंदगी में संघर्ष से

    मिला मुझे सबक़, और

    सफल हुआ मैं अपने उद्देश्य में

    किया मैंने जरा-मृत्यु से रहित

    स्मृतियों और इच्छाओं का आविष्कार।

    इन्हीं स्मृतियों और इच्छाओं से

    प्रकट हुई आशातीत जिजीविषा

    इसी जिजीविषा के चलते

    बचा है मनुष्य

    बचा है संसार

    और इसी जिजीविषा की परिणति है कि

    भविष्य की योजनाएँ हमारी

    साकार हो रही हैं वर्तमान में सारी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस नाउम्मीदी की कायनात में (पांडुलिपि)
    • रचनाकार : ऋतु कुमार ऋतु

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