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टरुआ

tarua

चंद्रेश्वर

कितने काम का होता है टरुआ

सुबह-शाम डेरी में

गोशाला में

या चरन के पास पड़े गोबर को हटाने में

होती है आसानी इससे

इसकी खोज की होगी ज़रूर

किसी अच्छे शौक़ीन मिज़ाज गोपालक ने

कम श्रम में

कम समय में

गाय-बैल या भैंस के पड़े गोबर को

हटाने या किनारे करने के लिए

सच में कितने काम का होता है टरुआ

फिर भी कितनी बड़ी विडंबना है कि

टरुआ नहीं पाता महत्व

सहज ही किसी मेहनती आदमी को

कह देते हैं लोग कि टरुआ मत बनो

यानी ख़ाली टरुआ मत टालो

जबकि वह अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने में

करते-करते अटूट मेहनत

टूट-टूटकर बिखर जाता है

कुछ लोग या कुछ चीज़ें ज़रुरी हों

या काम की हों भले ही

मनुष्यता के पक्ष में या सभ्यता-संस्कृति के निर्माण में

वे पड़ी रहती हैं उपेक्षित किसी कोने में या हाशिए पर

उनकी सक्रियता के बावज़ूद कहते हैं लोग कि टरुआ है स्साला

केवल जानता है टालना केवल किसी काम को

बल्कि वक़्त को भी

ऐसा क्यों है कि ज़रूरी है जो

गाली पाता है वो ही

देखा जाता है हिक़ारत से

अपनी सारी उपयोगिता के बाद भी

और गंदगी फैलाने वाला

मचाने वाला छीछालेदर

सब जगह विराजता है

ऊँचे आसन पर!

स्रोत :
  • रचनाकार : चंद्रेश्वर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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