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सुनो भिक्षु

suno bhikshu

प्रदीप सैनी

अन्य

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प्रदीप सैनी

सुनो भिक्षु

प्रदीप सैनी

और अधिकप्रदीप सैनी

    भिक्षु,

    सुना है मैंने

    तुम तिब्बत से आए हो

    तुम्हारे लिए मेरे पास सवाल हैं कई

    संशय त्याग दो

    मुझे नहीं है कोई रुचि

    उन मंत्रों में छिपे आध्यात्मिक रहस्य को जान लेने की

    जिन पर ख़ुद का यक़ीन बनाए रखने के लिए

    बुदबुदाते रहते हो उन्हें निरंतर

    मेरे सवाल बड़े सीधे और सरल हैं

    मैं जानना चाहता हूँ

    कितने वर्षों का अपमान, पीड़ा और निर्वासन

    विद्रोह को जन्म देता है

    क्या धर्म का अरण्य

    इतना बीहड़ होता है

    तुम जो सुन नहीं पाते हो

    मिट्टी की पुकार

    ये जो नौनिहाल हैं तुम्हारे

    सिर्फ़ शक्ल-सूरत से ही

    तिब्बती होने का भ्रम देते हुए

    साइबर कैफ़े और स्नूकर क्लबों में

    भंग पीकर मस्त हैं जो

    क्या इन्हें बताया है तुमने

    ठीक-ठीक क्या घटा था

    बरसों पहले तिब्बत के भीतर

    क्या ये जानते हैं अब

    घट रहा है क्या तिब्बत के भीतर

    कुछ तो बोलो भिक्षु

    यूँ मौन रहो

    यह स्वाँग तुम्हें गूँगा कर देगा

    सवालों के जवाब से पहले

    धर्मगुरु की तरफ़ मत ताको

    उनके सिर पर सुनहरा ताज है

    उनकी विवशता समझो

    अपने भीतर झाँको भिक्षु

    —भीतर—

    यही तो सिखाया था धर्म ने भी पहले-पहल

    फिर चूक कहाँ गया धम्म्

    या चूके तुम

    शांति जिसकी तलाश में शुरू की थी यात्रा तुमने

    उसकी मंज़िल कोई पुरस्कार

    तो हरगिज़ नहीं था

    ये कैसे हितैषी हैं तुम्हारे

    जो ख़रीद रहे हैं तुमसे तुम्हारी आवाज़

    मुझे बताओ भिक्षु

    क्या है देती सुनाई कहीं तिब्बत की आवाज़

    सिर्फ़ बुदबुदा रहे हो तुम

    कोई जवाब नहीं देते हुए

    ऐसा तो नहीं भिक्षु

    खो दिया है तुमने भी अपना स्वर

    अभी अगर प्रार्थना-चक्रों ने

    क्षीण नहीं की है तुम्हारी श्रवण-शक्ति

    तो सुनो भिक्षु

    उन सभी नदियों का विलाप

    जो पिछली लगभग आधी सदी से जारी है

    जिनमें नहाने से अक्सर ही

    कतराते रहे होंगे तुम्हारे पुरखे

    जाओ उन नदियों को हौसला बँधाओ

    भिक्षु लौट जाओ

    लौट जाओ अपने देश

    शरण

    चाहे धर्म की ली गई हो

    या पड़ोसी मुल्क की

    तुम हमेशा शरणार्थी ही कहलाए जाओगे

    तुमने सुना भिक्षु

    मैनें क्या कहा

    माँ ही सिखा सकती है बोलना

    लौटा सकती है खोई हुई आवाज़

    तुतलाहट से फिर करनी होगी शुरुआत

    कितनी ही बार करना होगा रियाज़

    बोलने से पहले एक मुकम्मल लफ़्ज़—

    तिब्बत।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप सैनी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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