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पासंग

pasang

संतोष कुमार चतुर्वेदी

अन्य

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और अधिकसंतोष कुमार चतुर्वेदी

    पत्थर का यह छोटा-सा टुकड़ा

    जो तराज़ू के एक पलड़े पर

    मौजूद रहता है हमेशा

    बटखरे के बग़ल में

    अपने-आप में कोई बटखरा नहीं

    जब तराज़ू के पलड़े असंतुलित हो

    बेमानी करने लगते हैं

    बटखरे भी जब उद्धत हो मनमानी करने लगते हैं

    तब यह पासंग ही होता है

    जो आगे बढ़कर रोकता है

    इनकी बेमानी-मनमानी

    अपने-आप में इनका कोई तय आकार नहीं कोई आकृति नहीं

    अपने-आप में इनकी कोई निश्चित तौल नहीं

    ख़राब पड़ी टॉर्च-बैटरी या ईंट-पत्थर के टुकड़े भी बन सकते हैं पासंग

    अपने निहायत छोटे आकार-प्रकार में भी

    ये तौल को एक तुक-ताल में ढालते हैं

    पस्त पड़ चुके सच में फिर जान डालते हैं

    और बेराह हो चले जमाने को ढर्रे पर लाते हैं

    बेरंग पड़ चुकी ज़िंदगी में

    बार-बार भरते हैं उल्लास के रंग

    यही बेरूप-बेआकार पासंग

    स्रोत :
    • रचनाकार : संतोष कुमार चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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