मील का पत्थर है रात

meel ka patthar hai raat

लवली गोस्वामी

लवली गोस्वामी

मील का पत्थर है रात

लवली गोस्वामी

झींगुरों की लय पर जुगनू तारों की तरह टिमटिमाते हैं

मन मरे परिंदे के मानिंद टहनियों के कुचक्र में फँसा है

बेहद कोमल क्षणों की आवाज़ें धरोहर होती हैं

ध्वनियाँ स्वाद पैदा करती हैं कई बार।

भुलाई गई सब कहानियाँ एक रात

झुंड बनाकर ओस से केश धोने निकलती है

छूना भी कभी-कभी सहा नहीं जाता

नवजात शिशु के केशों सा कोमल है प्रेम

देह की अलगनी से गीले कपड़े की तरह

अस्थि-आँते फिसल कर गिर गए

इंद्रधनुष के लच्छे भरे हैं अंतड़ियों की जगह

अस्थियों की जगह गीतों की सुनहरी पंक्तियाँ रखी हैं।

कलियाँ पौधों की बंद मुठ्ठियाँ हैं

रौशनी नहीं मानती, वह रोज़ आती है

एक दिन कलियाँ बंद मुठ्ठी खोलकर

रौशनी से हाथ मिलाती है।

आँधियों के बाद टूटी टहनियों में

दिवंगत चिड़ियों की फड़फड़ाहटों से भरी होती हैं

सुन लिया जाना, आवाज़ों की मृत्यु नहीं है

चकाचौंध से डरी मैं तुम्हें ढूँढ़ती हूँ सब तरफ़

मन जानता है सिर्फ़ हिलोरें लेता पानी ही पैदा कर सकता है

चमचमाती रौशनी में झुर्रियाँ।

स्रोत :
  • रचनाकार : लवली गोस्वामी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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