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अमर प्रेम

amar prem

श्री अरविंद

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श्री अरविंद

अमर प्रेम

श्री अरविंद

और अधिकश्री अरविंद

     

    यदि मैंने तुम्हारे विरल वर्ण के लिए तुमसे किया हो प्रणय-निवदेन, 
    तुममें निहित गुलाब के कारण तुम्हें हृदय में रखा हो संजोकर 
    या तुम्हारे केशों में ‘प्रकृति' की कांतिमयी प्रचुरता पाकर 
    हे रमणी सुंदरतम, 
    हो सकता है समाप्त मेरा प्रेम।

    या, मैंने तुम्हें चाहा हो तुम्हारे पावन यौवन 
    और मृदुल लालायित वाणी के कारण, 
    तुम्हारी तत्पर करुणा और सुविचारित सत्य 
    के लिए, हे दयाद्रवित हृदय, 
    समय कर सकता अनुसरण, पा सकता लक्ष्य।

    किंतु मैंने तुम्हें तुम्हारे लिए ही सच किया है प्यार 
    और स्वयं से किया है बंधनग्रस्त;
    मैं द्रुतगति चला हूँ अमर से अमर की ओर। 
    परिवर्तन को मैंने किया अतिक्रमित 
    और 'काल' के लिए मैं हूँ तैयार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री अरविंद | चुनिंदा कविताएँ (पृष्ठ 90)
    • रचनाकार : श्री अरविंद
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2020

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