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वे चले गए

ve chale ge

रफ़ाइल अलबर्ती

अन्य

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रफ़ाइल अलबर्ती

वे चले गए

रफ़ाइल अलबर्ती

और अधिकरफ़ाइल अलबर्ती

     

    वे पत्तियाँ हैं पत्तियाँ
    जो केवल इसलिए तबाह कर डाली गईं
    क्योंकि वे सदा जीवित रहना चाहती थीं
    वे छः पखवाड़े तक भी यह सोचना नहीं चाहती थीं
    कि एक उजाड़ की रचना किस प्रकार होती है

    ना ही वे उस बूँद की ज़िद को जानना चाहती थीं
    कि आख़िर वह उस गंजी खोपड़ी पर टपककर ही क्यों
    चोट करना चाहती है
    जिसे पहले ही से ख़राब मौसम पर टाँक दिया गया था

    हमारे साथ और कुकर्म भी हो सकते थे
    आज क्या तारीख़ है?

    पत्तियाँ उन हड्डियों से मिलकर ढेर लगाती हैं
    जिन्हें जीवन-भर
    एक मक़बरे का अधिकार हासिल नहीं हुआ

    मुझे मालूम है मैं तुम्हें सता रहा हूँ
    मेरी धमनियों में रक्त धुएँ की चपेट में आ गया है

    तुम्हारी पीतांबरी आँखें थीं
    पर अब यह साफ़ है कि तुम समझ नहीं पाओगी
    कि वे राख हो चुकी हैं!

               
    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 91)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : रफ़ाइल अलबर्ती
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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