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वर्षा की दुपहर

varsha ki duphar

सेसर वायेखो

अन्य

अन्य

सेसर वायेखो

वर्षा की दुपहर

सेसर वायेखो

और अधिकसेसर वायेखो

    आज दुपहर को घनघोर बारिश हो रही है

    और मेरी प्राण! लगता है जैसे मैं अब जीना नहीं चाहता!

    यह दुपहर बड़ी ही मधुर है, क्यों हो!

    यह पीड़ा और सौंदर्य से आभूषित है : एक युवती की तरह!

    लिमा में आज पानी ख़ूब बरस रहा है : और मुझे याद

    आती हैं

    अपनी कृतज्ञताओं की अंधी गुफाएँ

    मेरी बरफ़ीली चट्टानों के नीचे कुचले हुए किसी के फूल—

    चट्टानें—जो उसकी प्रार्थना यह क्या करते हो! की

    परवाह नहीं करतीं

    मेरे उन्मत्त काले फूल और लगातार बर्बर ओलों की मार,

    और बर्फ़ का अंतराल

    उसके मौन का सम्भ्रम

    जलते हुए दीपकों में अंतिम प्रहर की कथा अंकित करता है।

    और आज इस बरसाती दुपहर को

    मेरे साथ सिर्फ़ यह दिल है

    रहस्यमय उलूक पक्षी की भाँति

    दूसरी औरतें बग़ल से गुज़र जाती हैं

    मुझे इतना उदास देखकर

    मेरे दर्द की गहराइयों में से

    थोड़ा-थोड़ा कर

    तुम्हें अपने साथ ले जाती हैं

    आज दुपहर को घनघोर बारिश हो रही है

    और मेरे हृदय : अब मैं जीना नहीं चाहता!

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 289)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : सेसर वायेखो
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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