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प्रेमालाप

premalap

अनुवाद : मदन सोनी

निकानोर पार्रा

अन्य

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निकानोर पार्रा

प्रेमालाप

निकानोर पार्रा

और अधिकनिकानोर पार्रा

     

    —एक घंटा हो चुका है हमें यहाँ आए
    लेकिन तुम हमेशा वही पुराना जवाब लेकर आते हो
    पागल करना चाहते हो तुम मुझे अपने चुटकुलों से
    लेकिन वे मुझे याद हो चुके हैं
    तुम्हें मेरा मुँह पसंद नहीं? तुम्हें मेरी आँखें पसंद नहीं?
    —बिलकुल, मुझे पसंद हैं तुम्हारी आँखें।
    —तब तुम उन्हें चूमते क्यों नहीं?
    —मैं उन्हें चूमने ही जा रहा हूँ!
    —तुम्हें मेरी जाँघें या मेरे स्तन पसंद नहीं?
    —क्या मतलब, मुझे तुम्हारे स्तन पसंद नहीं!
    —तब तुम प्रगट क्यों नहीं करते ऐसा?
    जब तक मौक़ा है, इन्हें छुओ।
    —मुझे यह पसंद नहीं कि तुम मुझे ऐसा करने को कहो।
    —फिर मेरे कपड़े क्यों उतरवाए तुमने?
    —मैंने तुमसे कपड़े उतारने को नहीं कहा था
    तुम ख़ुद चाहती थीं इसलिए तुमने उतारे :
    ख़ैर इसके पहले कि तुम्हारा घरवाला लौटे इन्हें पहन लो
    बकवास बंद करो और फुर्ती से कपड़े पहनो
    इसके पहले कि तुम्हारा घरवाला घर लौटे।

       
    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 56)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : निकानोर पार्रा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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