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ईश्वर का मुखपत्र

iishvar ka mukhpatr

लुइस मुनोज़ मारिन

अन्य

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लुइस मुनोज़ मारिन

ईश्वर का मुखपत्र

लुइस मुनोज़ मारिन

और अधिकलुइस मुनोज़ मारिन

    जैसे कोई सिपाही जंग लगी हुई तलवार

    घुटनों पर रख कर दो टूक कर दे

    वैसे ही मैंने अपने हृदय पर रखकर

    इंद्रधनुषों को तोड़ डाला है

    मैंने गुलाबी और सुर्ख़ बादलों को

    क्षितिज के पार उड़ा दिया है

    मैं अपने सपनों को भूल गया हूँ

    ताकि उन सपनों को समझ सकूँ

    जो उन लोगों की नसों में सोए हुए हैं

    जो मेरी चाय जुटाने के लिए

    पसीना बहाते हैं, आँसू बहाते हैं।

    वे सपने जो तपेदिक से चलनी हुई पसलियों में हैं

    (ज़रा सी हवा—ज़रा सी धूप का सपना)

    वे सपने जो भूख से जलती आँतों में निहित हैं

    (रोटी का, सिंकी रोटी का एक टुकड़ा)

    नंगे पैरों चलने वालों का सपना

    (सड़क पर कम कंकड़ रहें प्रभु! कम टूटी हुई बोतलें हों)

    खुरदुरे हाथों का सपना

    (हरी दूब, चिकने रेशम का सपना)

    कुंठित और कुचले हुए लोगों का सपना

    (प्यार...ज़िंदगी...उल्लास)

    इनके लिए मैं अपने सपनों को भूल गया हूँ।

    मैं अब ईश्वर का मुखपत्र हूँ

    उसका आंदोलन-कर्ता

    सितारों और नंगे भूखों की भीड़ को

    मैं ले चल रहा हूँ

    नई सुबह की ओर!

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 279)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : लुइस मुनोज़ मारिन
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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