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दुर्दिन है आज

durdin hai aaj

ओसिप मंदेलश्ताम

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ओसिप मंदेलश्ताम

दुर्दिन है आज

ओसिप मंदेलश्ताम

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    रोचक तथ्य

    मायाकोवस्की की प्रेमिका लील्या ब्रीक के अनुसार मंदेलश्ताम की यह कविता मायाकोवस्की की प्रिय कविता थी!

     

    दुर्दिन है आज
    बंद है
    टिड्डों का समूहगान
    क़ब्र के काले पत्थरों से
    अँटा पड़ा है
    उदास चट्टानी दालान

    कभी गूँजें हैं
    छोड़े गए तीरों के स्वर
    तो कभी सुन पड़े
    लटके हुए कौओं की चीख़
    मैं देखूँ सपना ख़राब-सा
    क्षण के पीछे उड़ा जा रहा क्षण
    समय दे रहा है कोई सीख

    तुम आओ
    आकर बंधन को दूर करो
    पृथ्वी के इस पिंजड़े को काटो
    माया को चूर करो
    कोई प्रचण्ड तराना गूँजे फिर
    बाग़ी, अनसुलझे, अनजाने
    सब रहस्यों को दूर करो

    ओ, कठोर आत्मा काली!
    लटकी चुपचाप तू डोल रही है
    भाग्य बंद द्वार खटखटाए ज़ोर से
    पर तू न खोल रही है।


            
    स्रोत :
    • पुस्तक : तेरे क़दमों का संगीत (पृष्ठ 18)
    • रचनाकार : ओसिप मंदेलश्ताम
    • प्रकाशन : शिल्पायन, दिल्ली
    • संस्करण : 2005

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