रात्रिदग्ध एकालाप

ratridagdh ekalap

राजकमल चौधरी

राजकमल चौधरी

रात्रिदग्ध एकालाप

राजकमल चौधरी

 

एक

बारूद के कोहरे में डूब गए हैं पहाड़, 
नदी, मकान, शहर के शहर।
बीवी से छिपा कर बैंक में पैसे डालने 
का मतलब नहीं रह गया है
अब।

दो

मुझे चुप रह कर इंतज़ार करना
चाहिए। मुझे इंतज़ार करते हुए चुप 
रहना चाहिए। मुझे चुप रहते हुए, 
इंतज़ार करते हुए, रहना चाहिए। (किसलिए?) 

तीन

तुम लोगों से छुटकारा नहीं चाहता
हूँ। ग़ुलामी में भी इतनी स्वाधीनता
तो मैंने प्राप्त कर ली है, कि किसी
को ग़ुलाम कह सकता हूँ।

चार

उसके लंबे पत्र में ईमानदारी का
सवाल हर तीसरे शब्द के बाद। हर 
तीसरे शब्द के बाद ईमानदारी
का सवाल अठारह पुराणों में।

पाँच

मैं टेबुल पर घूमते हुए ग्लोब में उस
शहर को ढूँढ़ने लगा, जहाँ कोई
पुरुष और कोई स्त्री एक-दूसरे की पीठ
से लगकर रोए नहीं हों।

छह

मेरी क़मीज़ के अंदर अपना बायाँ
हाथ डालकर, वह बूढ़ी औरत एक
अरसे से अपनी लिपिस्टिक की खोई 
हुई डिबिया तलाश रही है।

स्रोत :
  • पुस्तक : ऑडिट रिपोर्ट (पृष्ठ 245)
  • रचनाकार : राजकमल चौधरी
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 2006

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