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अपने सर के नीचे तुम्हारा दायाँ हाथ

apne sar ke niche tumhara dayan haath

अनुवाद : विष्णु खरे

मिक्लोश राद्नोती

अन्य

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मिक्लोश राद्नोती

अपने सर के नीचे तुम्हारा दायाँ हाथ

मिक्लोश राद्नोती

और अधिकमिक्लोश राद्नोती

    अपने सर के नीचे तुम्हारा दायाँ हाथ रखकर रात मैं लेटा रहा।

    दिन का दुःख अभी बाक़ी था। मैंने तुम्हें उसे हटाने को कहा,

    मैं तुम्हारी नब्ज़ में चलते हुए ख़ून को सुनता रहा।

    क़रीब बारह बजे होंगे जब नींद मुझपर बाढ़ जैसी आई

    उसी तरह अचानक जैसे बहुत पहले पंख भरे उनींदे बचपन में

    आई थी और उसी तरह धीरे-धीरे मुझे झुलाने लगी।

    तुम मुझे बता रही हो कि तीन भी नहीं बजे थे

    कि मैं चौंककर उठ बैठा, डरा हुआ

    बुदबुदाने लगा, कविताएँ पढ़ने लगा, अनर्गल चिल्लाने लगा

    डरी हुई चिड़िया की तरह मैंने अपने हाथ फैला लिए

    जो बग़ीचे में किसी परछाईं को देखकर अपने पंख फड़फड़ाने लगती है

    मैं कहाँ जा रहा था? किस तरह की मौत मुझे डरा रही थी?

    मेरी अपनी, तुमने मुझे चुप किया और बैठकर आँखें मूँद मैं तुमसे चुप होता

    रहा

    मैं चुपचाप लेट गया, आतंकों की राह इंतज़ार करती रही।

    और मैं सपने देखता रहा। शायद किसी और तरह की मौत के।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 216)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : मिक्लोश राद्नोती
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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