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नल-वियुक्ता दमयंती का विलाप

nal wiyukta damyanti ka wilap

अनुवाद : इबोहल सिंह काड़्जम

लमाबम कमल सिंह

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लमाबम कमल सिंह

नल-वियुक्ता दमयंती का विलाप

लमाबम कमल सिंह

और अधिकलमाबम कमल सिंह

    (विरह संगीत)

    1

    करें करुणा मुझ निस्सहाय पर

    हिंस्र-पशु-आक्रांत वन में

    क्या निश्चय है मुझ अभागिनी के त्याग का!

    निर्बल बाँहों का कंठहार

    क्या हुई खंडित पुष्प-माला सी

    थामा दृष्टिहीना सा, तुम्हारा पल्लू

    झटक रहे क्या, फाड़ते वस्त्र ज्यों

    कंटकाकीर्ण पग, ठोकर ठूँठ

    हा विधाता! अनुगमन असमर्थ

    दुख पर दुख की मार, बोझ दुख का

    लगता यही तुम्हारा स्वभाव!

    2

    गूँजती निशा भयावह सन्नाटे से

    मानव-रुदन, वीणा, बाँसुरी, सितार, सारंगी

    पहुँच पाती कानों तक कोई ध्वनि

    सुप्त भ्रमर गुंजन, कल्लोल नहीं पंछियों की

    किंतु ध्वनि एक पड़ती सुनाई

    लाँघ सीमाएँ हृदय की आत्मा की

    नभ में उड़ती करती गुँजार

    पथिकों का 'ताम्ना' क्या होता जो ताम् ताम्!

    सुनो कहता क्या गुँजन ताम् ताम्!

    हे सखी तामना! लाई संदेश प्रियतम का!

    3

    सुदूर पर्वत पर एक दहक रही दावाग्नि

    शनैः-शनैः होगी शांत आप,

    अम्बर की ओस से

    उतरने पर सघन रात्रि!

    दहकती वियोगाग्नि हृदय में मेरे

    हाँ, भड़की वियोग-ज्वाला और

    झरने पर गगन से ओस

    उतर आने पर सघन रात्रि!

    शांत नहीं पानी में डुबकी से भी

    शांत नहीं, चाहे बैठूँ शीतल बयार में

    विलक्षण! दग्ध भी हृदय बनता राख

    हे दयामय! कीजिए पूर्ण निज कामना।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कमल : संपूर्ण रचनाएँ (पृष्ठ 102)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : कमल
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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