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सारा ज्ञान कर्मों में समाप्त हो जाता है

sara gyan karmon mein samapt ho jata hai

शिरीष कुमार मौर्य

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शिरीष कुमार मौर्य

सारा ज्ञान कर्मों में समाप्त हो जाता है

शिरीष कुमार मौर्य

और अधिकशिरीष कुमार मौर्य

    मुझे उस लड़ाई में लड़ना पड़ा

    जो मेरी नहीं थी

    मुझे किसी और को सुलाने के वास्ते

    ऐसे क़िस्से गढ़ने पड़े कि ख़ुद जाग रहा हूँ

    वर्षों से

    मुझे कभी हरियाई ज़मीन बनकर बिछना पड़ा

    कि कोई पाँव ले सके

    कोई देख सके बहुत ऊपर

    पक्षियों की पाँतों का आना-जाना कुछ नीचे

    तितलियों का अपने रंगीन हल्के पंख हिलाना

    मुझे एक छोटा आसमान बनना पड़ा

    जिसे गिर पड़ना है शायद

    एक दिन

    मेरे ही ऊपर

    मुझे कुछ नहीं कई-कई शब्द लिखने पड़े

    कि कोई चाहता था

    मेरे जीवन को पढ़ना

    पर कितने ही हिज्जे ग़लत हो गए

    जो लिखा उससे जीवन कुछ और बन गया

    किसी को पढ़ना था कुछ पढ़ कुछ और गया

    आजकल मैं सड़कों पर चलते हुए बीच में पड़े पत्थर हटाता हूँ

    सावधानी से कीलें और काँच की किरचें उठाता हूँ

    कुछ खा़स नहीं करता हूँ

    तब भी कई सारे उम्‍मीद भरे नौउम्र चेहरे मेरा इंतज़ार करते हैं

    मैं वेतन लेता हूँ अमीरी-रेखा का

    और एक सरकारी कमरे में ग़रीबी-रेखा को पढ़ाने जाता हूँ!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शिरीष कुमार मौर्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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