समकालीन

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केतन यादव

केतन यादव

समकालीन

केतन यादव

विचारधारा का अंत हो चुका

यह एक बुद्धिजीवी को अस्वीकार्य है

कितनी पहचानहीनता के बीच

हम नायकत्व के पूर्ववत ही भूखे हैं

स्मार्ट शहरों के बीच ग्राम-स्वराज के नोस्टैलिजिक

हम तकनीकी के चरमोत्कर्ष बेला में

मानविकी की असुरक्षा से चिंतित लोग हैं

हमारी चमड़ी नई हो रही

और हम पुरानी कोशिकाओं को अक्षय मान रहे?

एक साथ उत्तर-आधुनिक और

पूर्व-आरंभिक दोनों हो रहे हैं

यथार्थ को खंड-खंड कर देखते हुए

असहाय हम

योजकता का कोई सूत्र भी तलाश रहे!

हमारी नाकामियों की एक जाति है

हमारी आवरणप्रियता का एक धर्म

हमारी कुंठाओं के कई-कई संप्रदाय हैं

हमारे लिंग की वर्चस्वता के मानकों में

घिरते जा रहे हम-ख़ुद-आप

इस महा-नैतिकता के फलागम-काल में

अनैतिक अल्पसंख्यक हम

इतने कि हमारे पापी चेहरे अतिशय स्पष्ट हैं

और हमें किसी फेक प्रोफ़ाइल की आवश्यकता नहीं

मेरे अशुद्धरक्त में अनेक भाषाओं का योगदान है

तब मैं वर्णमाला की सुचिता का प्रमाण कैसे दूँ

कैसे कह दूँ कि मेरी उत्पत्ति अवैज्ञानिक है

और अतार्किकता की बाट मेरी माप है

जब बिना भूगोल इतिहास की तलाशी हो रही

मैं अपना समाजशास्त्र ढूँढ़ रहा हूँ‌

और प्रौद्योगिकी के मध्य अपना आदिम उद्योग

विकल हूँ सुराज में अपनी अराजकता के लिए!

कोई कह रहा पदार्थ पहले आया कोई कह रहा चेतना

कोई वस्तु में खोज रहा सौंदर्य कोई दृष्टि में

कोई प्रतिभा को अर्जित बता रहा कोई जन्मजात

कोई विज्ञान‌ को आस्था से जोड़ रहा

कोई आस्था को वैज्ञानिक सिद्ध‌ कर रहा

कोई गढ़ तोड़कर गढ़ बना रहा

कोई तटस्थ होकर लाँघ रहा तट

कोई आपदा कह रहा कोई अवसर

कोई उत्थान बोल रहा तो कोई पतन

कोई कालसापेक्ष है कोई विषयसापेक्ष

कोई अस्मिता बचा रहा तो कोई प्रेम

कोई कला साध रहा तो कोई विचार

कोई वैश्विक हो रहा कोई स्थानीय

कोई लोक में मगन है

कोई आभिजात्य में रत

कोई इस विमर्श‌ में संघर्षरत है

कोई उस विमर्श में विचाररत

और मेरी यह बेचैनी

इतनी-इतनी समकालीन है

कि मैं नहीं पा रहा इसकी कोई छोर।

स्रोत :
  • रचनाकार : केतन यादव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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