सहमति का युग

sahamti ka yug

मनमोहन

मनमोहन

सहमति का युग

मनमोहन

टेढ़े रस्ते सीधे हो रहे हैं

टेढ़े लोग सीधे हो रहे हैं

कोई रुकावट नहीं

कोई मोड़ है

कोई दो ओर नहीं

कोई दो छोर नहीं

दुविधा कहीं नहीं

सब कहीं सुविधा है

इनकार की ज़रूरत क्या

थोड़ा-सा इसरार काफ़ी

क्योंकि कोई और नहीं

क्योंकि कोई ग़ैर नहीं

सब अपने हैं

कोई ऐसा इंतज़ार नहीं

जो हमें विकल कर दे

या तोड़ दे

किसी को कहीं से आना नहीं है

किसी को कहीं जाना नहीं है

बस प्रेम से रहना है

देखिए कमाल

एक राह से एक ही राह निकलती है

कोई दो राहें नहीं निकलतीं

अक्सर एक ही बात

अपेन दानमूने बना लेती है

जिससे बात रह जाती है

सच्चाई बस एक है

बाक़ी उदाहरण हैं

सहमति बुनियादी है

असहमति तो ऐसे ही है

जिससे सहमति घटित होती दिखाई दे

पहले ही जवाब इतना मौजूद है

कि सवाल पैदा ही नहीं होता

कैसी फुर्ती है

कि समस्या बनने से पहले ही

समाधान हाज़िर हो जाता है

जितना विवाद नहीं

उससे कहीं ज़्यादा बिचौलिए हैं

दलीलें, मिसालें, सुबूत

सब एक तरफ़ हैं

गवाह, वकील, मुवक्किल,

मुंसिफ़ यहाँ तक कि मुद्दई

सब एक तरफ़

स्रोत :
  • पुस्तक : ज़िल्लत की रोटी (पृष्ठ 41)
  • रचनाकार : मनमोहन
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2006

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