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रूठा-रूठा क्यों रहता...

rutha rutha kyon rahta. . .

ज्ञानराज माणिकप्रभु

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ज्ञानराज माणिकप्रभु

रूठा-रूठा क्यों रहता...

ज्ञानराज माणिकप्रभु

और अधिकज्ञानराज माणिकप्रभु

    रूठा-रूठा क्यों रहता सखि मुझसे मेरा साजन है।

    ज़रा-ज़रा-सी बातों पर क्यों होती हम में अनबन है॥

    झूठ-मूठ की चुगली कर जो साजन को नित भरमाती॥

    उल्टी-सीधी बातें कर जो प्रियतम का मन भटकाती।

    वह माया जादूगरनी सखि मेरी अपनी सौतन है॥

    भक्ति भावना श्रद्धा पूजा सब सखियों को भगा दिया॥

    मेरे पीछे भय का उसने भूत भयानक लगा दिया।

    मैं कैसे निपटूँ अब उससे वह तो सचमुच डायन है॥

    मिल सकूँ मैं प्रियतम से वह ऐसी साज़िश करती है।

    मुझे बाहों में भर ले प्रिय यही सोचकर डरती है।

    देख सकती सुख मेंरा वह जनम-जनम की बैरन है॥

    मेरा भोला प्रिय तो कहता माया मेरी अपनी है।

    नहीं जानता वह बेचारा वह कपटिन है ठगनी है।

    कैसे समझाऊँ प्रीतम को यही 'ज्ञान' की अड़चन है॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्ञानराज माणिकप्रभु
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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