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अतिथि

atithi

अनुवाद : कांता

अन्ना अख्मातोवा

अन्य

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और अधिकअन्ना अख्मातोवा

    सब कुछ पहले—जैसा :

    बजती है उड़ती बर्फ़

    भोजन-घर की खिड़कियों पर।

    मैं तो बदली नहीं, लेकिन

    एक आया आदमी मेरे पास।

    पूछा, चाहते हो क्या तुम?

    बोला, नरक में रहना तुम्हारे साथ

    मैं हँसी, “निःसंदेह, बरबाद हो जाएँगे

    हम दोनों।

    लेकिन उठा कर कृश हाथ अपना

    नरमी से छुए फूल उसने :

    मुझे बताओ, ये कैसे करते हैं प्यार तुम्हें,

    तुम कैसे करती हो प्यार, मुझे बताओ।

    निर्निमेष देख रही थी

    धुँधली आँखें उसकी

    अँगूठी मेरी।

    उसके ज्योतित, कुरूप चेहरे की

    हिली नहीं एक भी पेशी।

    मुझे पता है, ओह,

    उस का है सुख यह जानना

    उत्कटता से और आवेग सहित

    कि उसे चाहिए नहीं कुछ,

    और कि मैं उसे

    कर सकती नहीं इनकार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 346)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : अन्ना अख्मातोवा
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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