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सभ्यताएँ

sabhytayen

वंदना

अन्य

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वंदना

सभ्यताएँ

वंदना

और अधिकवंदना

    सभ्यताएँ

    सज-सँवार कर

    गहने

    और

    चमकीले कपड़े

    पहनाकर

    एलीट वर्ग

    के यहाँ

    खड़ी कर दी गई हैं

    देवता

    अपने पात्र

    लेकर

    चले गए हैं

    किसी कुपात्र की

    व्यवस्था ठीक करने

    धर्म

    अपना ज्ञान

    बघार रहा है

    दो लाइन के

    बड़े चटकीले पोस्टर

    में छपकर

    रईशी के

    आलम की

    तस्वीरों में

    एक 

    देश

    की ग़रीबी

    छुप जाती है

    बीमारी

    ग़ायब हो जाती है

    लोप

    हो जाते हैं भ्रष्टाचार...

    लीद

    बन जाती है शिक्षण व्यवस्था

    जिसे हर आयोग 

    बे-रोज़गारों पर लीपकर 

    हंटर मारकर 

    दौड़ाता रहता है

    दो तीन दशक तक...

    सभ्यताएँ

    इस दृश्य पर मुस्कराती हैं

    धर्म

    ठहाके लगाता है

    देवता

    दब जाते हैं

    रईसी के मलबे में

    और

    देश

    देखता है पलट-पलट कर

    यही दृश्य

    लगातार...

    स्रोत :
    • रचनाकार : वंदना
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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