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लावारिस

lavaris

मोहम्मद अनस

अन्य

अन्य

मोहम्मद अनस

लावारिस

मोहम्मद अनस

और अधिकमोहम्मद अनस

    जब अर्जुन ने महाभारत में मछली की आँखें भेदी थीं

    क्या सच्चे पति होने की अर्जुन ने कोशिश भी की थी

    इक यही सवाल तो सदियों से नारी के मन को खाता है

    जो चीर हरण की ज़िल्लत को भी धर्म में लिपटा पाता है

    जब राधा ने सब त्याग दिया भय, मोह, ईर्ष्या भी

    तब वृंदावन की गलियों में क्या हुई थी प्रेम की वर्षा भी 

    जब काली को ब्रह्माँड का सारा क्रोध मिला के गढ़ा गया

    तब शिवा के चुप अवतार से ही उस अग्नि भाव को पढ़ा गया

    जब हव्वा को कोसा जग भर ने इबलीस की करस्तानी से 

    और आदमी भी ठुकराए गए ला फ़ानी से 

    मैं जान हक़ीक़त वहशी जिस्म की तार तार हो जाता हूँ 

    इक मर्द के अंदर मरे मर्द को रोता हूँ दफ़नाता हूँ 

    अपनी आँखों के गड्ढों में अश्कों की क़ब्र बनाता हूँ 

    इक बार नहीं दो बार नहीं सौ बार यही दोहराता हूँ 

    हमदर्दी का ढोंग रचा कर दरवेशी का खेल दिखा कर

    मक़तल-मक़तल चिल्लाता हूँ 

    फिर लगता है की ये ज़माना

    धोखा देने वालों का क़िस्सा है 

    एक धुआँ है जो अज़ल से चिमनी से निकल-निकल कर हम सबके दिल पर काली चादर चढ़ा रहा है

    हम ही ग़लत हैं जो इन क़िस्सों पे ना जाने कबसे बढ़ा चढ़ाकर अपने अंदर की नारी को अजब रवैये से मुद्दत से छिपा रहे हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मोहम्मद अनस
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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