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रात की सैर

raat ki sair

संध्या चौरसिया

अन्य

अन्य

संध्या चौरसिया

रात की सैर

संध्या चौरसिया

और अधिकसंध्या चौरसिया

    किसी गोद में सिर छिपाने के अभाव में

    एक हाथ पकड़ने के अभाव में

    आँखें मूँदकर किसी चेहरे की आकृति खींचने

    या सुंदर समाज के सपनों के अभाव में

    दिन के अंत में

    किसी से कहने और सुन लेने के अभाव में

    कि रात हो गई है

    अब ठहर जाओ

    हम कितनी देर तक बड़बड़ाते हैं

    स्मृतियों की पुनरुक्ति का सिक्का

    दिन के बाज़ार में चलता नहीं

    रात को पूरा चाँद होकर

    चढ़ जाता है आसमान पर

    और ढाप लेता है धड़ का ऊपरी हिस्सा

    नींद से बाहर तमाम अभावों की नींद में

    हम निकल पड़ते हैं

    देर रात... किसी सैर पर

    स्रोत :
    • रचनाकार : संध्या चौरसिया
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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