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प्रेम, जो घुमा रहा है सूर्य और चंद्र को

prem, jo ghuma raha hai surya aur chandr ko

चाङ् ह्यान जाङ्

अन्य

अन्य

चाङ् ह्यान जाङ्

प्रेम, जो घुमा रहा है सूर्य और चंद्र को

चाङ् ह्यान जाङ्

अपनी आँखों से, और अपनी आँखों में

एक लड़की देखती है मुझे

मैं जो फड़फड़ा रहा हूँ एक मनुष्य और एक दृश्य के बीच।

मनुष्य होकर, एक आवाज़ निकालता हूँ मैं

भागते हुए घोड़े के समान।

दृश्य की हैसियत से मैं

और किसी जैसा नहीं, सिवा एक खड़े पेड़ के।

प्यार, जो घुमा रहा है सूरज और चंद्रमा को अपनी-अपनी धुरियों पर

घुमाता है मेरी आँखों को भी।

यही कारण है कि

एक आदमी देखता है एक लड़की को

अपनी आँखों से और अपनी आँखों में।

स्रोत :
  • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 360)
  • संपादक : अशोक वाजपेयी
  • रचनाकार : चाङ् ह्यान जाङ्
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  • संस्करण : 1989

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