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बस थोड़ी देर सोना चाहती हूँ

bas thoDi der sona chahti hoon

सुजाता

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सुजाता

बस थोड़ी देर सोना चाहती हूँ

सुजाता

और अधिकसुजाता

    नहीं, बत्तियाँ बुझाओ मत

    पर्दे नहीं लगाओ

    मत बंद करो दरवाज़े

    थोड़ा शोर और थोड़ी रौशनी आती रहे

    मैं बस थोड़ी देर ही सोना चाहती हूँ

    ज़्यादा आराम नहीं चाहिए मुझे

    एक लंबी सुकूनदेह नींद के बारे में सोच कर

    डर जाती हूँ।

    मैं सोई निश्चिंत और किसी बच्चे की आवाज़ सुन पाई तो?

    वह जो लौट रही है स्कूल से पस्त, निराश और बुख़ार में

    जिसकी स्कर्ट पर लगा है ख़ून का धब्बा

    वह जो लड़ कर लौटा है भुनभुनाता हुआ अपनी माँ के बारे में सुनकर अपशब्द

    वह जो कचरा बीनते-बीनते नशे की लत में पड़ गया

    जिसकी क्रूर आँखें और फैले हुए हाथ किसी को शर्मिंदा नहीं करते अब

    वह जिसकी अभी चीख़ निकली है मणिपुर में

    वह जो बिना बोले ताबूत में सो गया, जैसे नाराज़ था मुझसे

    वह जो अभी फ़लस्तीन में रोई है अपनी माँ की मृत देह के पास

    जिसके ख़ुद का सिर फट गया है बम-गोलों की वर्षा से

    मलबे में दबने से पहले जिसका नन्हा हाथ उठा था मदद के लिए

    उन्हें सुनने के लिए मैं कच्ची रखना चाहती हूँ अपनी नींद

    काश मैं उनके लिए रख पाती थोड़ा भरोसा

    इस दुनिया के प्रति

    जो नष्ट हो रहा है

    उनसे ज़्यादा मेरे मन में।

    लेकिन यह सब मैंने अपने बारे में बना लिया

    मैं रहूँ तो इनमें से कोई भी बात मानी नहीं रखती

    मेरे लिए भी

    कोख

    बच्चे

    नींद

    भरोसा

    यह कविता।

    इसे पढ़ने से बेहतर हो कि आप पढ़ें बाआवाज़

    दुनिया के सामने

    एक घोषणा नफ़रत के ख़िलाफ़!

    युद्ध के विरोध में

    अपनी वचनबद्धता करें सिद्ध

    या फिर एक प्रार्थना करें उस दुनिया के नष्ट हो जाने की

    जो है बच्चों के ख़िलाफ़।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुजाता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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