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पाठ

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अनुवाद : रामसिंह चाहल

नवतेज भारती

अन्य

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और अधिकनवतेज भारती

    पाठ करती-करती

    मैं तेरे साथ बातें करने लग जाती हूँ

    और पता नहीं लगता

    पाठ कब संपूर्ण हो जाता है

    तू ख़ुदा से पूछना

    ‘वह’ मेरा पाठ

    मंज़ूर कर लेता है?

    ख़ुदा कहता है—

    सभी मेरा पाठ ही करते हैं

    पाठ करता-करता

    काश! कोई मेरे साथ भी

    बातें करने लग जाए

    ‘बेचारा’ कहती-कहती ख़ामोश हो गई

    रात को फिर सपने में

    ख़ुदा ने कहा

    ‘माँग, जो माँगना है’

    तू अंतर्यामी है

    तुझे पता है

    मैं क्या माँगती हूँ

    फिर बार-बार क्यों पूछता है?

    ‘शायद भूले-भटके ही

    तू उसकी जगह मुझे माँग ले’, ख़ुदा ने कहा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओ पंखुरी (पृष्ठ 50)
    • रचनाकार : नवतेज भारती
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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