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न्याय

nyay

परमानंद श्रीवास्तव

अन्य

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और अधिकपरमानंद श्रीवास्तव

    न्याय देने के लिए

    वे कब से बैठे हैं यहाँ

    खुले गलियारे में

    कुछ थके और कुछ ऊबे

    पश्चाताप भरे मन से

    एक दूसरे को देखते

    जब तक बालों में

    कंघियाँ फिराते

    टूँगते मूँगफलियाँ

    सलीक़े से

    एक-एक दाना बे

    साफ़ चुनते हैं

    रखते हैं तश्तरी में

    तश्तरी में

    जिसमें रखते हैं वे

    निकाल कर अपने दाँत

    हर रात

    सोने से पहले

    टूँगते जाते हैं

    सोचते जाते हैं

    कैसा होगा वह

    जो अब

    न्याय लेने के लिए

    पहले आएगा

    पहले से सुस्त होगा

    या कुछ बेहतर

    बुज़दिल होगा

    या मतिमंद

    खीसें निपोरता

    या खिन्न उदास

    पहला सवाल वे क्या करेंगे

    भारत के संविधान के बारे में पूछना

    मुनासिब होगा

    या नहीं

    इत्मीनान से

    उसके अब तक आने की वजह से

    वे सोचते हैं

    एक-एक दाना साफ़ चुनते हुए

    कुछ करने से

    कुछ करना बेहतर है

    उनकी निगाह में

    न्याय भी दिया जा सके

    तो न्याय देने की भूमिका में

    बैठे रहना

    सेहत को

    फ़ायदा

    पहुँचाता है

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 40-41 (पृष्ठ 126)
    • संपादक : सोमदत्त
    • रचनाकार : परमानंद श्रीवास्तव

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