Font by Mehr Nastaliq Web

निर्वसना तुम होगी

nirvasna tum hogi

फ़्रांसी जेम

अन्य

अन्य

फ़्रांसी जेम

निर्वसना तुम होगी

फ़्रांसी जेम

और अधिकफ़्रांसी जेम

    निर्वसना तुम होगी कक्ष में प्राचीन वस्तुओं के बीच

    पतली लंबी, उजाले की बंसी की तरह

    गुलाबी आग के सम्मुख घुटने समेटे

    तुम जाड़े का मंद मर्मर सुनोगी

    तुम्हारे चरणों के निकट मैं तुम्हारे घुटने अपनी अंजलियों

    मैं सहेजे,

    तुम्हारी सलज मुस्कान, लतर की टहनियों से भी मंद, अनुकूल

    मेरी माथे की लटें तुम्हारी जंघाओं पर बिखरी

    और मेरी आँखों में आँसू कि आह तुम

    कितनी अच्छी हो

    अच्छा लगेगा हम दोनों का एक दूसरे पर अभिमान करना

    और मैं तुम्हारे कंठ को आहिस्ते से चूम लूँगा और तुम

    मेरी पलकों को, और तुम मेरी ओर देखकर मुस्का दोगी

    अपनी सुकुँवार गर्दन को ज़रा सा मोड़कर

    और जब बूढ़ा नौकर स्वामिभक्त और बीमार सा,

    द्वार पर दस्तक देगा—कहेगा “खाना तैयार है!,

    तुम चौंक जाओगी, लजा जाओगी और अपनी पतली बाँहें

    लहरा कर अपने भूरे वस्त्र सम्हाल लोगी

    और जब तक हवा दरवाज़े में से आए

    और पुरानी बेमरम्मत घड़ी ग़लत वक़्त के घंटे बजाए

    तुम अपने पाँव—हाथी दाँत के सुगंध बसे,

    काले आच्छादनों में वापस छिपा लोगी

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 326)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : फ़्रांसी जेम
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए