निरावरण से

niravaran se

जयदेवि तायि लिगाडे

इस भव का मिथ्या खेल व्यर्थ हुआ

मिथ्या सुख अति हुआ

पर वस्तु अदृष्ट हुई

सत्य-सत्य यह बात

सत्य का स्मरण हुआ दूर।

इस जग में क्यों लाए, हे देव!

प्रार्थना कर चाहा नहीं, तग कर माँगा नहीं

इस जग का समस्त सुख

उन्मत्त सरिता की भँवर में

हाथ-पाँव सिकोड़े

हूँ, दिक्-भ्रांत भयभीत,

दया नहीं आनी चाहिए, कैसा यह तुम्हारा मौन

सुप्रसन्न तुम

मुझ असावधान को

मरुभूमि में

घनांधकार में

कर रही हूँ आर्तनाद

किंचित् भी दे नहीं रहे तुम प्रकाश

प्रकाश! तुम महा प्रकाश?

दीनों में अति दीन मैं

दानियों में अति दानी तुम

घन में घनतर तुम

मेरे लिए नहीं क्या अणु भर भी आश्रय तुम्हारे विस्तार में

विस्तारातीत।

तुम्हारी ऊँचाई को

तुम्हारे वास्तविक अंतर को

कैसे समझ सकती हूँ मै!

हे निरंतर!

कथन मन से भिन्न

चित्त बुद्धि से पृथक्

चिह्न ज्ञान से दूर

कैसे समझूँ तुम्हारा अस्तित्व

कैसे खो पाऊँगी तुममें

उठ पाने वाला कौर

कैसे उतरेगा नीचे कंठ के

अप्रत्यक्ष वस्तु

कैसे आएगी पकड़ में

मेरे भावों के प्रकाश

एक बार बोल बस एक बार

“चलकर मेरी ओर—

तुम चल सकती हो इतना भर कह

तुम करुणामय, तुम भवबाधाहर

मेरी भवबाधा कर दूर

दो अभयदान

तुम निरावरण!

स्रोत :
  • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 145)
  • रचनाकार : जयदेवितायि लिगाडे
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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