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नींद की चिड़िया

neend ki chiDiya

नेहल शाह

नेहल शाह

नींद की चिड़िया

नेहल शाह

नींद की चिड़िया,

बिखरे हुए सपनों को इकठ्ठा कर

एक घोंसला बनाती है।

उन सपनों में से ही

किसी एक सपने की गोद में,

मैं आराम करती हूँ

कुछ देर को।

वह चिड़िया भी बैठ जाती है

मेरे जूड़े की खोह में

आँखों में नींद लिए

और चोंच में सपना।

मैं अब नींद की नींद में पहुँच कर

देखती हूँ सपने के भीतर का सपना

जहाँ कई स्त्रियाँ हैं,

जो अपने केश खोलकर

बरसों से जाग रही हैं।

वे सभी अपने गर्भ में नौ महीने का

बच्चा पाल रहीं हैं।

सबके कंधों पर चिड़ियाँ बैठीं हैं।

किंतु चिड़ियाँ कंधों पर ठीक से सो

नहीं पा रहीं,

शायद इसलिए,

उनकी चोंच में कोई सपना नहीं है।

और स्त्रियों ने अपने सपने

गर्भ में पल रहे बच्चों के नीचे बिछा दिए।

अब संभव नहीं वहाँ

बिन नींद के सपना,

और बिन सपने के नींद।

वे स्त्रियाँ सदियों से,

राह देख रहीं हैं किसी की,

जो उस सपने के सपने में पहुँच कर उन्हें

या तो एक पल की नींद दे जाए

या सपना।

और फिर जगा कर उन्हें बाहर ले आए

उस बिन नींद और बिन सपनों की दुनिया से।

मैंने कई रातों की नींदों में दाख़िल हो,

कई सपने रच लिए थे।

जिसमें से

मेरा सबसे प्रिय सपना

मेरी आठ माह की बेटी मेरे गर्भ में ही छोड़कर चली गई थी।

मैं अपने उस सपने से,

उन स्त्रियों की इस विचित्र अवस्था तक पहुँच जाती हूँ।

विस्मय से भर जाती हूँ देखकर

उनकी सदियों से खुली सुर्ख़ आँखे,

सूखे होंठ, रूखे खुले केश,

दर्द भरा वक्ष, सूजे पैर

और नौ माह का परिपक्व हुआ गर्भ

मैं उन्हें रोकने के लिए आवाज़ लगा रही हूँ।

किंतु वे रुकती हैं,

मुझे देखती हैं।

मैं प्रयास करती हूँ कि

मैं पहुँच सकूँ उस प्रथम स्त्री तक

जो पहली बार

इस बिन नींद के सपने में पहुँच गई थी

और उसे कुछ देर को सुला सकूँ,

किंतु, वह कहीं खो गई है।

मैं रोकती हूँ

मुझे दिख रही आख़री स्त्री को चलने से,

किंतु वह भी चलती जा रही है।

मैं उसके कंधे से चिड़िया उठा लेती हूँ

और उसे प्रेम से जगाकर एक सपना देती हूँ,

सपना देते ही वह उड़ने लगती है।

उसके उड़ते ही,

सपना अनंत गुना हो जाता है।

सभी चिड़ियों की चोंच में जाता है।

मैं देखती हूँ,

वे स्त्रियाँ अपने केशों को गूँथकर बाँध रही हैं,

चिड़िया उनके जूड़ों में सपने सजा रही है

वे सभी कुछ पल को सोकर जाग रही हैं।

(उस सपने के सपने से बाहर आने के लिए

सोकर जागना बहुत ज़रूरी था)।

वे सपने से लौटते हुए अपने बच्चे जनती हैं,

और उस पल भर की नींद से बाहर आकर

देखती हैं,

एक ओर उनका बच्चा,

और दूसरी ओर सपना सो रहा है।

वे खिड़की पर बैठी चिड़िया को देख कर मुस्कराती है।

स्रोत :
  • रचनाकार : नेहल शाह
  • प्रकाशन : पहली बार

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