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नील विहग

neel vihag

श्री अरविंद

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श्री अरविंद

नील विहग

श्री अरविंद

और अधिकश्री अरविंद

     

    मैं ईश्वर का विहग हूँ उनके नील गगन 
    में; दिव्य रूप में समुन्नत विमल और प्रसन्न 
    मैं गाता हूँ सत्य और माधुर्य के गान 
    कि देव और देवदूत के कर्ण करें श्रवण।

    मैं मर्त्य की धरा से अग्नि ज्वाल-सम होता आरोहित 
    उस आकाश में जो है विषादरहित 
    और करता विकीर्ण उसके जन्म की दुःखाकुल 
    मिट्टी में आनंद के बीज अनल।

    देश और काल के पार मेरे पंख भरते हैं उड़ान 
    उस 'परमप्रकाश' में जो न कभी होता म्लान; 
    मैं लाता हूँ 'शाश्वत' के रूप का सुख चरम 
    और 'आत्मा' की देव-दृष्टि का वरदान।

    मैं अपने माणिक नयनों से लोकों का करता मापांकन; 
    मैं पग टेक बैठा हूँ ज्ञान के तरुवर पर 
    जो 'स्वर्ग' के पुष्पों से व्याप्त है परिपूर्ण आच्छन्न 
    'शाश्वतता' की जलधाराओं के तट पर।

    मेरे ज्वलंत ज्योतिर्मय हृदय से कुछ भी नहीं गोपन : 
    निस्सीम और निश्चल है मेरा मन;
    परम हर्ष की रहस्य कला है मेरा गान 
    अमर संकल्प है मेरी उड़ान।

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री अरविंद | चुनिंदा कविताएँ (पृष्ठ 129)
    • रचनाकार : श्री अरविंद
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2020

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