तुम्हारे नाम पर

tumhare nam par

पंकज प्रखर

पंकज प्रखर

तुम्हारे नाम पर

पंकज प्रखर

एक रोज़ तुम्हारी चोटी बनाते हुए

तुम्हारी पीठ पर उँगली से लिखना था मुझे प्रेम!

तुम्हारी चोटी में गूँथने थे

हरसिंगार के फूल

टाँकना था नक्षत्रों को

तारों को खींचकर लगाना था बिंदी की जगह।

किसी रोज़ तुम्हारे पाँव में

महावर लगाते हुए

नर्म तलवों में उँगली से

गुदगुदा कर लिखना था अपना नाम और

नाख़ूनों पर सजानी थी ओस की बूँदें।

किसी रोज़ तुम्हारी गोद में लेटकर

एक नई दुनिया के बारे में सोचते हुए

रखना था अपनी बेटी का नाम।

उस एक दिन का होना तय था

जब तुम मुझसे मिलती

और मैं सागर हो जाता।

लेकिन परंपराओं से बँधे नियम

कभी-कभी ज़िंदगी के तमाम समीकरणों को

असंतुलित कर जाते हैं।

कुछ प्रेमिकाएँ

अपने प्रेमी के नाम पर रखती हैं

अपने बेटे का नाम।

इस रवायत में

मैं अपनी बेटी का नाम रखूँगा

तुम्हारे नाम पर।

'सुं'दर उपसर्ग वाले नाम पर!

स्रोत :
  • रचनाकार : पंकज प्रखर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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