नदियों की प्रेम-कथा

nadiyon ki prem katha

प्रेमशंकर शुक्ल

प्रेमशंकर शुक्ल

नदियों की प्रेम-कथा

प्रेमशंकर शुक्ल

अद्वितीय है वाबस्ता होना

नदियों की प्रेम-कथा से

यद्यपि हमारी प्रेम-कथाओं का

नदियों से है अथाह संबंध

लेकिन नदियों की अपनी प्रेम-कथा है

सुनकर इसे होता है सुखद आश्चर्य!

रेवा (नर्मदा)—पिता मेकल की प्रतिज्ञा-पूर्ति के बाद

नर्मदा-सोन का प्रेम

और विवाह की तैयारी

फिर विवाह के पहले ही जोहिला का जाना

सोन और नर्मदा के बीच

(बीच का भी बीच होता है

जोहिला इसी तरह आयी

नर्मदा-सोन के बीच )

प्रेम त्रिकोण कहें इसे

या पृथ्वी पर प्रेम की अप्रतिम नदी-कथा

लोककंठ में बहती है जो अबाध

नर्मदा-सोन का विवाह होने-होने को है

कि नर्मदा की सेविका-सह-सखी

जोहिला का हो जाता है सोन से मिलन-प्रसंग

सोन और जोहिला को प्रणय-आबद्ध देखना

नर्मदा के लिए था असहनीय आघात

होते-होते रिश्ता टूट गया

मिलते-मिलते रह गया दो लहरों का मन

क्रोधावेश में नर्मदा चल दी पश्चिम

छोड़कर सोन का साथ

श्रुति में सोनभद्र नद

और नर्मदा, जोहिला हैं नदी

इस तरह नद-नदी का रह गया विवाह

रह गया विवाह कथा में बहता है

बनकर धरती का पहला प्रेम त्रिकोण

सोन पूरब-नर्मदा पच्छिम

प्रेम में विलोम बहने का यह है अपूर्व दृष्टांत

कितना सुनता आया हूँ कि

तिर्यक ही चुनता है अपने लिए प्रेम

कविता ने ही बताया मुझे कि प्रेम में है

अचानक का वर्चस्व

समय भी नहीं जानता प्रेम की नियति

जोहिला को सोन संग रतिरत निहार

क्रोधावेग में चल देती है नर्मदा

कुछ पलों के बाद संज्ञान में

सोन को पता चलता है जब

नर्मदा की नाराज़गी का रहस्य

अपनी चूक का वास्ता दे-दे कर

रेवा! रेवा! रेवा! पुकारता है सोनभद्र

लेकिन पीछे पलटकर निहारती तक नहीं रेवा (नर्मदा)

सोन की रेवा! रेवा! की पुकार

मेकल के जंगलों में गूँजती है आज भी

और रेवा में भी बहती है इस पुकार की करुण-ध्वनि

जोहिला से सोन का मिलन

मलिन नहीं हुआ है अब तक

लेकिन रेवा के लिए सोनभद्र के कलेजे में

उठती है तड़प-टीस लगातार

और चाहत अपरंपार

रेवा भी सोन के लिए अशुभ नहीं कहती कुछ

चिर कुँवारी रहने का व्रत ही अब रेवा का अलंकार है

जोहिला तो पा गई दुर्लभ प्रेम

लेकिन नर्मदा भटकती है जंगल-जंगल

और रेवा! रेवा! पुकारते गंगा में छलांग लगा लेता है सोन

पृथ्वी-पोथी में लिखी हुई है

प्रेम की यह अचरज भरी कथा-संधि

आख्यान की सुंदरता है यह

या है यह सुंदरता का आख्यान

रेवा की कसक

सोन का अफ़सोस

लहरें लेकर बहती हैं

कहती हैं वनलताएँ इसे कनबतियों की तरह

कविता में इस प्रेमकथा का फैला है

रमणीय आदिवास

दुनिया में नदियों की प्रेमकथा यह पहली

बहती रहती है कभी रेवा-लय

कभी सोन

जोहिला भी सोन-संगम में

सहेजे रहती है अपना अस्तित्व

सोन-जोहिला के मिलन

और नर्मदा के चिर बिछोह को समेटे

नदियों की महान प्रेम-कथा

कविता में भी धड़कती है लगातार

नर्मदा-सोन की प्रेमकथा

आँसू भर कर गाई जाने वाली प्रेमकथा है

अपने 'अचानक' में जो

भरे हुए है युग-युगांतर

रेवा की सोन-कसक

सोन की रेवा-हूक

कविता के कलेजे में है

पीर का अथाह

सोन स्त्री-सुख पाया

लेकिन रह गया दाम्पत्य सुख

जिसकी विदग्ध हूक लिए बहता है सोनभद्र

कौमार्य-सज्जित नर्मदा

महान प्रेमकथा में

अनवरत लिखी जा रही

अर्थोत्कर्षी कविता की तरह बहती है

कविता कहती है हलफ़ उठाकर

रेवा का जीवन है एकदम

कविता के जीवन जैसा ही!

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रेमशंकर शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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