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मृत्यु-कामना पर ‘किमाश्चर्यम्’

mirtyu kamna par ‘kimashcharyam’

प्रिया वर्मा

प्रिया वर्मा

मृत्यु-कामना पर ‘किमाश्चर्यम्’

प्रिया वर्मा

पृथक कामनाओं के मध्य है लय में डोलती

तरह-तरह से तरह-बेतरह की मृत्यु

जबकि है प्रत्येक कामना में भरा अधजला शव बनकर रहने का वरदान

कहाँ से आती हैं ये अतिरिक्त विनाश की कामनाएँ

क्या इस पर ज़ाहिर करूँ आश्चर्य?

या अपनी दीवानगी को पियूँ?

कमाल कि स्वयं में मृत्यु की कामना

सिद्ध है। वरद है। सुंदर है।

आत्महत्या/हत्या नहीं—

विशुद्ध मृत्यु : तत्काल हो जाए वह

शब्द में

कैसी एकमुख सुस्पष्ट वेध्य द्रुतगामी बेधड़क

बेलाग और नग्न कामना

सुपरफ़ास्ट रेल की कानफोड़ू गति से तीव्र

कि टूट पड़े आसमान, उठे लपट, फट जाए धरती

या समंदर घुस आए रक्त में पूरे अंक भर खार के साथ

बढ़े दाब और हृदय फट जाए

स्मृति के काग़ज़ पर गिरे अम्ल की बूँद

गल जाए रत्ती-रत्ती आत्मा

संसार नृत्यरत। रक़्स अनवरत।

ता थेई थेई तत थेई थेई तत नहीं

साँसों के तार पे नाचता एक यार

जिस्म से बेज़ार

थाप बिना नृत्य संगीत बिना

मैं कैस वो लैला/जूलियट या जो भी है

उसका मर्दाना नाम

ज़बान से कहता रहे बार-बार मुझे

—जाओ, मुँह में गिर जाओ

मृत्यु के।

मेरा कैसपन रोमियोपना इस बर्तन में बचा रहे,

मैं बाहर गिर जाऊँ

समय मुँह बाए है अहर्निश

भूख कोमलता चबा रही है

क्या सहज कामना है जैसे संतरे की मीठी गोली

चूसना, और अधीरता में कट् से तोड़कर चबा लेना

थोड़ी देर मीठा मन लिए घूमना

धुर अकेले फिरना संतुष्ट शब्दविहीन

देखती हूँ दस दिशा से समवेत दौड़ती हैं

राग-रागिनियाँ

आरोह-अवरोह में स्वर ऊँचा लगे कि मंद्र

दुख नहीं

दुख नहीं कि साँस रुकी रहे दाह किए जाने तक

किंतु, मृत्यु की कामना, आह!

बड़ा रोई हूँ

एक नहीं कई बार रोई हूँ

एक जैसे प्रेम की अनुभूति के टूटने पर

दूर जाने पर, बचाने के प्रयासों के सुख तक पर रोई हूँ

समझाने पर भी रोई हूँ

कि कब तक रोऊँगी

रोने से क्षीण होती है दृष्टि

रोने से सुंदर होते हैं नयन

काले करघे बनाते हैं कपासी मुख को भीषण आकर्षक

वैधव्य नहीं करता एक मास से अधिक का विलाप

फिर प्रेमी क्यों रोता है प्रति चातुर्मास?

समझी नहीं, रोती रही मृत्यु पर प्रेम की।

मेरी कल्पना में मृत्यु किसी तरह की नहीं।

हत्या थी। अपनी हत्या।

कामना करो ऐसी मृत्यु की कि मेरी कामना से भी मिले

मिले त्रिवेणी, दुख नहीं।

कोई है नहीं तो मैं भी तो अमर नहीं।

जब मुझ से उकताओ

करो तुम मेरी मृत्यु की कामना।

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रिया वर्मा
  • प्रकाशन : समकालीन जनमत

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