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मेसोपोटामिया की औरतें

mesopotamiya ki aurten

शिवम चौबे

अन्य

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शिवम चौबे

मेसोपोटामिया की औरतें

शिवम चौबे

और अधिकशिवम चौबे

    वे चुनार से आई थीं

    और वापस वहीं जा रही थीं

    इसी बीच वे मुझे मिलीं

    पहले उन्होंने वक्त पूछा जो वाक़ई ख़राब था

    फिर परिचय—जो अधूरा रहा

    बातें हुईं तो एक ने बताया

    'मनगढ़ गइल रहली, दवाई लेवे'

    उनके कष्ट के लिए जितनी दवाएँ थीं

    उससे कहीं ज़्यादा दवाओं के लिए कष्ट

    वे बिना मर्दों के समूह में थीं

    लेकिन बिना मालिक के भेड़ें नहीं थीं वे

    उनका रंग इतना गाढ़ा था

    कि अँधेरा उनकी झुर्रियों में पैठा था

    आँखें इतनी व्यस्त कि

    उन्हें कुछ देखने की फ़ुर्सत नहीं थी

    उनके हाथ पत्थर जितने कठोर थे

    और चमड़ी मिट्टी जितनी खुरदुरी

    वे मेसोपोटामिया की औरतें थीं

    जो भूलकर हमारी सभ्यता में गईं थीं

    और नष्ट होने की प्रक्रिया में शामिल थीं

    वे इतनी निर्भीक थीं कि

    बिना टिकट सेकंड क्लास में चढ़ आईं और

    अपनी उम्र से ज़्यादा जगह घेरकर बतियाने लगीं

    उनकी बातें सर्दियों की रात जितनी लंबी थी

    और उनके कपड़ों ने सदियों की धूल फाँकी थी

    उन्हें बस इतना पता था

    कि पहाड़ शुरू होते ही उन्हें उतर जाना है

    और तीन बजे के गाढ़े अँधेरे में

    गाँव की तरफ़ सरक जाना है।

    पहाड़ उनके लिए उसी तरह थे

    जैसे अनजान रास्तों पर छोटे बच्चों के लिए पिता

    पिता के मरते ही वे घर से निकलना बंद कर देंगीं

    लेकिन वे निर्भीक थीं

    वे अभी भी अपनी परंपराओं में जीती थीं

    वे घर बनाती थीं

    चूल्हा चौका करती थीं

    निर्भीक तो थीं

    लेकिन प्रकृति से डरती थीं

    खेतों में फ़सलों को लोरियाँ सुना कर जवान करती थीं

    हवाओं से मानता मानती और नदियों का धन्यवाद करती थीं

    वे बच्चे पैदा करतीं

    और उन्हें इंसान बनाए रखने को

    हमारी सभ्यता से टकराती रहतीं

    वे युगों-युगों से जीवित थीं

    परंतु अब जब हमारी सभ्यता ने उन्हें ठुकरा दिया है,

    वे बीमार पड़ गई हैं

    और अब जब वे मरेंगी

    तब उनकी राख़ हवाओं में मिलकर

    संसार की तमाम नदियों में घुल जाएगी

    और मैं किसी पुल से गुज़रते हुए याद करूँगा

    कि वे मेसोपोटामिया की औरतें थीं

    जो हमारी सभ्यता में भटक आई थीं

    जिनका रंग रात जितना गाढ़ा था

    और जो वाक़ई निर्भीक थीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शिवम चौबे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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