मातृभाषा

matribhasha

जसवंत सिंह

जसवंत सिंह

मातृभाषा

जसवंत सिंह

हिंदी मेरी मातृभाषा है

हालाँकि वह मेरी माँ को

समझ में नहीं आती

फिर भी हिंदी मेरी मातृभाषा है

शायद यह मातृभाषा

शब्दों और अर्थों के अधीन नहीं

सिर्फ़ भावनाओं के अधीन है

या फिर मेरी भावनाएँ ही इसमें लीन हैं

हिंदी मेरी मातृभाषा है

फिर भी पहले-पहल स्कूल जाते वक़्त

मैं रो रहा था कि

वहाँ पर हिंदी बोलनी होगी

हिंदी मेरी मातृभाषा है

लेकिन जब अध्यापक सवाल पूछ रहे थे

तब मैं चुप रहा

क्योंकि वह हिंदी में बोल रहे थे

और जवाब देने के लिए

मुझे भी हिंदी में बोलना पड़ता

बहुत बाद में मुझे मालूम हुआ कि

मातृभाषा वो होती है जो पहले-पहल

किताबों में पढ़ाई जाती है

हालाँकि किताबों में अब भी वही लिखा है

जो पहले से सुनते रहे हैं

कि मातृभाषा माँ की भाषा को कहते हैं

लेकिन मैंने माँ से नहीं

अध्यापकों से सीखा था

मातृभाषा हिंदी को

हमसे कहा गया कि

वो भाषा मातृभाषा नहीं है

जिसमें बहनें तीज के दिन गीत गाती हैं

वह भाषा जिसमें

मेरे जन्म की बधाइयाँ दी गई थीं

मेरी मातृभाषा नहीं है

वह भाषा जिसमें गाँवों में लोग

एक दूसरे को ओळखाण1 देते हैं

मातृभाषा नहीं कहलाती

मैं मातृभाषा हिंदी सीखते-सीखते

उस भाषा को भूल गया हूँ

मेरी ज़ुबान लड़खड़ाती है

उस भाषा के शब्द बोलते-बोलते

लेकिन मेरी माँ नहीं भूली है

उस भाषा को

मेरी शादी के वक़्त गीत

उसी भाषा में गाए जाएँगे

यहाँ तक कि मेरी मौत के बाद

मेरे चाहने वाले

उसी भाषा में पार खणेंगे2 लेकिन वो भाषा

मेरी मातृभाषा नहीं है।

हमारी मातृभाषा हिंदी है

समूचे राजस्थान की मातृभाषा हिंदी है

यह घोषणा दिल्ली से हुई है

इस बात को हमने मान भी लिया है

क्योंकि दिल्ली से हुई

घोषणा के ख़िलाफ़ बोलना

देश को तोड़ना कहलाता है

मैं यहाँ घर से

सैकड़ों किलोमीटर दूर

मातृभाषा हिंदी पढ़ने आया हूँ

इसलिए नहीं कि

दिल्ली से घोषणा हुई है

बल्कि इसलिए कि

मुझे लगभग मर चुकी

उस भाषा को बचाना है

जिसे मातृभाषा तो नहीं कहते है

लेकिन उसे मेरी दादी बोलती थी

और माँ भी…

स्रोत :
  • रचनाकार : जसवंत सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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