कच्चा प्रेम

kachcha prem

प्रेमशंकर शुक्ल

प्रेमशंकर शुक्ल

कच्चा प्रेम

प्रेमशंकर शुक्ल

आम पृथ्वी के तन

और सूरज के मन से बना फल है

पृथ्वी आम में मीठे रस भरती है

और सूरज उसे पकाता है

आम ऐसा मीठा फल है

पककर जिसके टपकने में भी मिठास होती है

सुनकर जिसका टपकना

दौड़ पड़ता है हमारा बचपन

सिंदुरिया, सुआपंखी, शंखा, मालदह,

चपटिया, मिठौंहा आदि होते हैं

हमारे जनपदों में आमों के नाम

पके आम खाते हुए

पेड़ में लदे आम देखकर ललचाए राहगीरों का मन भी

चख लेते हैं हम

गिलहरी-खाए आम में

चली आती है गिलहरी के दाँत की शक्कर

सुग्गे आम को इतनी कलाकारी से खाते हैं कि

याद कर उसे पेड़ के मन में

दौड़ती रहती है हरियाली

अमराइयों में कोयल के गीत की मिठास

पकाती रहती है आम

इसीलिए आम खाते हुए बचाकर चलना होता है हमें

कि कोयल की गीत में गड़ नहीं जाएँ कहीं

हमारे दाँत

वसंत-मन लिए

आम सूरज के मन का फल है

पके मीठे आम में

जो थोड़ा-सा खट्टापन है

वही बिरहिन का कच्चा प्रेम है

आम की छाँव में प्रतीक्षारत है बिरहिन

दूरदेश से उसके साथी की

अभी तक कोई ख़बर नहीं आई है

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रेमशंकर शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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