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माँ

maan

ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

अन्य

अन्य

और अधिकज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

    मैंने सोचा था :

    वह कभी नहीं बदलेगी

    वह हमेशा सफ़ेद पोशाक

    और नीली आँखें पहनकर

    प्रतीक्षा करेगी

    सभी दरवाज़ों की दहलीज़ पर

    वह हमेशा मुस्कराएगी

    यह हार पहनने पर

    और अचानक

    धागा टूट गया

    अब मोती जाड़े बिताते हैं

    फ़र्श की दरारों में

    माँ को कॉफ़ी पसंद है

    गरम ईंट

    शांति

    वह बैठती है

    अपनी नुकीली नाक पर

    चश्मा ठीक करती है

    वह मेरी कविता पढ़ती है

    और सफ़ेद सिर से उसका खंडन करती है

    वह जो उसकी गोद से गिर गया था

    अपने ओंठ बिचकाता है और चुप

    एक नीरस बातचीत

    लैंप के नीचे मधुरता का उद्गम

    असह्य दुख

    किन कुओं से वह पानी पीता है

    किन सड़कों पर चलता है

    यह बेटा सपनों से अलग

    मैंने सौम्य दूध पिलाया

    वह क्षोभ से जलता है

    मैंने उसे गरम ख़ून से नहलाया

    उसके हाथ ठंडे और खुरदरे हैं

    तुम्हारी आँखों से बहुत दूर

    अंधे प्यार से बिंधे हुए

    अकेलेपन को सहना ज़्यादा आसान है

    एक सप्ताह के भीतर

    एक ठंडे कमरे में

    अपने गले में अटक के साथ

    मैंने उसकी चिट्ठी पढ़ी

    इस चिट्ठी में

    अक्षर अलग-अलग दीखते हैं

    प्यार करने वाले हृदयों की तरह

    स्रोत :
    • पुस्तक : अन्तःकरण का आयतन (पृष्ठ 17)
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक अशोक वाजपेयी और रेनाता चेकाल्स्का
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2003

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