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नसों में भर जाता है क्रोध

nason mein bhar jata hai krodh

धर्मेश

अन्य

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धर्मेश

नसों में भर जाता है क्रोध

धर्मेश

और अधिकधर्मेश

    नसों में भर जाता है क्रोध

    सत्ता के विरुद्ध

    सत्ता मर्दों की, ठाकुरों की

    बाभनों की, बनियों की

    भरे-पूरे, खाए-पीए, अघाए

    हुक्का गुड़गुड़ाते

    देह और पेट की भूख

    बिना मेहनत के शांत किए

    लोगों के आदर्शों को देख

    आँखों में उतर आता है क्रोध

    वे हमारी हत्या कर हम पर हँस पड़ते हैं

    हमारे क्रोध को कह देते हैं बेबुनियाद

    उनके बताए आदर्श, उनकी बताई क्रांति

    उनके बताए मार्क्स और लेनिन

    यही हैं शाश्वत और सत्य

    जैसे उनके बताए ब्रह्मा और शिव थे

    अपनी ही देह में जकड़े लोगों ने जाना

    गंगा नदी को पार कर

    सूने द्वीप पर प्रेम करने गए मछुआरों ने

    जबरन ब्याह दी गई

    सोलह बरस की लड़की

    उसकी प्रेमिका ने जाना

    क्रांति का गहन विमर्श

    धर्म के ठेकेदार मर्दों ने

    धर्म को छिटकते देख

    ले लिया क्रांति का ठेका

    और जो मर्द नहीं थे

    उन्हें नहीं मिला

    क्रांति में स्थान

    स्रोत :
    • रचनाकार : धर्मेश
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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