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लॉकडाउन

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मीना प्रजापति

अन्य

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और अधिकमीना प्रजापति

    ढलते सूरज के आँगन में

    समा गए हैं सारे विहग

    अपने पंखों से ऐसे इतरा रहे हैं

    जैसे बता रहे हों

    हमें नहीं चाहिए

    तुम्हारा हमसे छीना दाना-पानी

    दुनिया की सारी मीनारें

    हवा में साफ़-साफ़ दिख रही हैं

    समुद्र तल की खिल-खिलाती

    लहरों के साथ

    अठखेलियाँ करता हिरण

    शायद अपना बचपन याद कर रहा है

    सड़कें फर्राटेदार आवाज़ों से वीरान हैं

    पर साफ़ हैं, स्वच्छ हैं

    हर पत्ते का हर्फ़ हरा हो गया है

    तितलियाँ और रंगीली होकर

    मुस्कुराते फूलों पर अपना दावा कर रही हैं

    बस कुछ ही हफ़्तों की रुकावट से

    वसुंधरा साँस ले पा रही है

    लॉकडाउन में इंसानी रूह बंद है

    पर पृथ्वी आबाद है, ख़ुशहाल है

    वो ऐसे सजी है जैसे

    बिछड़ा साजन मिल गया हो

    पुष्प की भाँति शरमा रही है

    बाली की तरह इठला रही है

    और अपने बचते हुए अस्तित्व पर

    संतोष जता रही है कि

    अभी जीवन की उम्मीद शेष है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मीना प्रजापति
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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